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पुराण के कितने कल्प हैं?

पुराणशास्त्र के चार कल्प हैं: १. वैदिक कल्प २. वेदव्यासीय कल्प ३. लोमहर्षणीय कल्प ४. औग्रश्रवस कल्प

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इनमें उप पुराण कौन सा है?

ऋषिगण बोले: कितने पुराण हैं? कौन कौन से हैं पुराण? हमें विस्तार से बताइए। कलियुग शुरू होने वाला था तो सारे ऋषि-मुनि ब्रह्मा जी के पास गये थे। वे सब घबराये हुए थे। पता नहीं कलियुग में क्या होगा। कलि प्रभाव बहुत ही कुख्यात ह....

ऋषिगण बोले: कितने पुराण हैं? कौन कौन से हैं पुराण? हमें विस्तार से बताइए।
कलियुग शुरू होने वाला था तो सारे ऋषि-मुनि ब्रह्मा जी के पास गये थे।
वे सब घबराये हुए थे।
पता नहीं कलियुग में क्या होगा।
कलि प्रभाव बहुत ही कुख्यात है।
धर्म धीरे धीरे भ्रष्ट और नष्ट होने लगता है।
बडे बडे तपस्वी और धर्मिष्ठ भी कलि के प्रभाव में आकर अपराध करने लगते है।
सभी निष्ठुर, लोभी और कामातुर हो जाते हैं।
कैसे बचाएं अपने आपको कलि प्रभाव से?
ब्रह्माजी ने एक उपाय दिया।
यह एक चक्र है जिसका नाम है मनोमय चक्र।
इसको चलाओ, इसके पीछे पीछे चलते रहो।
जहाँ जाकर यह रुकेगा वह एक बड़ा ही पवित्र स्थान होगा।
उसके अंदर कलि कभी भी प्रवेश नहीं कर पाएगा।
वहाँ रहने से कलि तुम्हें कलंकित नहीं कर पाएगा, दूषित नहीं कर पाएगा।
प्रेत्यात्र चालयंश्चक्रं नेमिः शीर्णोत्र पश्यतः।
तेनेदं नैमिषं प्रोक्तं क्षेत्रं परमपावनम्।
चक्र का नेमि जहाँ जाकर शीर्ण यानी पतला होगा। वह जगह नैमिष कहा जाएगा- नैमिषारण्य।
आजकल नैमिषारण्य को नीमसार कहते हैं जो लखनऊ के पास है।
ऋषि लोग चक्र के पीछे पीछे चलते गये।
जब नैमिषारण्य पहुँचे तो उसका नेमि अचानक शीर्ण हो गया।
सब ऋषि मुनि वहाँ रहने लगे।
ऋषि-मुनियों ने सूत जी से विनती की: हमें उस परम पवित्र, कल्याणकारी कथा सुनाइए जिसमें धर्म के बारे में, अर्थ-संपत्ति के गुण और दोष के बारे में, काम के बारे में वर्णन किया है।
इन सबके बारे में सही ज्ञान पाने से ही मोक्ष मिल पाएगा।
इसलिये हमें इस परम पवित्र, सारे गुणों का आधार, सारे पापों को नष्ट कर देने वाले, सारे अभिलाषाओं को पूर्ण करने वाले भगवती का पुण्य नाम से, लीलाओं से युक्त श्रीमद् देवी भागवत को कृपया सुनाइए।
सूत जी संक्षेप में सारे पुराणों के बारे में बताते हैं।
अठारह महापुराण और अठारह उपपुराण हैं |
महापुराण हैं: मत्स्यपुराण, मार्कण्डेयपुराण, भविष्यपुराण, भागवतपुराण, ब्रहपुराण, ब्रह्माण्डपुराण, ब्रह्मवैवर्तपुराण, वामनपुराण, विष्णुपुराण, वायुपुराण, वराहपुराण, अग्मिपुराण, नारदपुराण, पद्मपुराण, लिंगपुराण, गरुडपुराण, कूर्मपुराण और स्कन्दपुराण।
और उपपुराण हैं: सनत्कुमारपुराण, नरसिंहपुराण, नारदीयपुराण, शिवपुराण, दुर्वासापुराण, कपिलपुराण, मानवपुराण, उशनापुराण, वरुणपुराण, कालिकापुराण, साम्बपुराण, नन्दीपुराण, सौरपुराण, पराशरपुराण, आदित्यपुराण, माहेश्वरपुराण और भागवतपुराण।
हर पुराण विशाल है।
वेदों की मंत्र संख्या सीमित है।
ऋग्वेद में १०,६०० मन्त्र हैं।
शुक्लयजुर्वेद में एक १,९७५।
साम वेद में १,८७५।
और अथर्ववेद में ५,९७०।
इसकी तुलना में देखो, पुराणों में:
श्रीमद्देवीभागवतपुराण में- १८,००० श्लोक।
ब्रह्माण्डपुराण में- १२,००० श्लोक।
ब्रह्मपुराण में- १०,००० श्लोक।
ब्रह्मवैवर्तपुराण में- १८,००० श्लोक।
वामनपुराण में- १०,००० श्लोक।
वायुपुराण में- २४,६०० श्लोक।
विष्णुपुराण में- २३,००० श्लोक।
वराह पुराण में- २४,००० श्लोक।
अग्नि पुराण में- १६,००० श्लोक।
नारद पुराण में- २५,००० श्लोक।
पद्मपुराण में- ५५,००० श्लोक।
लिंगपुराण में- ११,००० श्लोक।
गरुडपुराण में- १९,००० श्लोक।
कूर्मपुराण में- १७,००० श्लोक।
और स्कन्द पुराण में- ८१,००० श्लोक।
उपपुराणों में अलग।
अब मुझे एक बात बताओ।
आरोप यह है कि हि हिन्दू धर्म को, हिन्दू धर्म के ग्रंथों को ऊँचे स्तर के लोगों ने अपने स्वार्थ के लिये बनाया है।
अन्य जातियों को धर्म से, धर्म के रहस्यों से दूर रखा।
तीन लाख तिरसठ हजार चार सौ श्लोक आम आदमी के लिये।
वेदों में बीस हजार चार सौ सत्ताईस मन्त्र।
हिन्दू धर्म में ध्यान किस के प्रति है?
आम आदमी के प्रति।

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