93.0K
14.0K

Comments

Security Code

34691

finger point right
सनातन धर्म के भविष्य के लिए वेदधारा का योगदान अमूल्य है 🙏 -श्रेयांशु

गुरुजी की शिक्षाओं में सरलता हैं 🌸 -Ratan Kumar

गुरुजी की शास्त्रों पर अधिकारिकता उल्लेखनीय है, धन्यवाद 🌟 -Tanya Sharma

वेद पाठशालाओं और गौशालाओं के लिए आप जो अच्छा काम कर रहे हैं, उसे देखकर बहुत खुशी हुई 🙏🙏🙏 -विजय मिश्रा

यह वेबसाइट बहुत ही शिक्षाप्रद और विशेष है। -विक्रांत वर्मा

Read more comments

Knowledge Bank

आगम और तंत्र: व्यावहारिक दर्शन

आगम और तंत्र व्यावहारिक दर्शन पर ध्यान केंद्रित करते हैं। इसका मतलब है कि वे रोज़मर्रा की ज़िंदगी और आध्यात्मिक प्रथाओं का मार्गदर्शन करते हैं। आगम वे ग्रंथ हैं जो मंदिर के अनुष्ठान, निर्माण, और पूजा को कवर करते हैं। वे सिखाते हैं कि मंदिर कैसे बनाएं और अनुष्ठान कैसे करें। वे यह भी बताते हैं कि देवताओं की पूजा कैसे करें और पवित्र स्थानों को कैसे बनाए रखें। तंत्र आंतरिक प्रथाओं पर ध्यान केंद्रित करते हैं। इनमें ध्यान, योग, और मंत्र शामिल हैं। तंत्र व्यक्तिगत आध्यात्मिक विकास का मार्गदर्शन करते हैं। वे सिखाते हैं कि दिव्य ऊर्जा से कैसे जुड़ें। आगम और तंत्र दोनों ज्ञान के अनुप्रयोग के बारे में हैं। वे लोगों को आध्यात्मिक रूप से पूर्ण जीवन जीने में मदद करते हैं। ये ग्रंथ केवल सैद्धांतिक नहीं हैं। वे चरण-दर-चरण निर्देश प्रदान करते हैं। आगम और तंत्र का पालन करके, हम आध्यात्मिक प्रगति प्राप्त कर सकते हैं। वे जटिल विचारों को सरल और क्रियान्वित करने योग्य बनाते हैं। यह व्यावहारिक दृष्टिकोण उन्हें दैनिक जीवन में मूल्यवान बनाता है। आगम और तंत्र आध्यात्मिकता को समझने और अभ्यास करने की कुंजी हैं।

क्षीरसागर की उत्पत्ति कैसे हुई?

रसातल में रहनेवाली सुरभि के दूध की धारा से क्षीरसागर उत्पन्न हुआ। क्षीरसागर के तट पर रहने वाले फेनप नामक मुनि जन इसके फेन को पीते रहते हैं।

Quiz

रामायण किस युग से संबंधित है ?

विश्व में अशांति का मूल स्रोत क्या है? विश्व में अशांति इसालिए है कि राष्ट्र एक दूसरे से लडते हैं। राष्ट्र अशांत क्यों हैं? क्योंकि राष्ट्र के अन्दर जो कई समाज हैं, वे एक दूसरे से ईर्ष्या और द्वेष करते हैं और लडत�....


विश्व में अशांति का मूल स्रोत क्या है?

विश्व में अशांति इसालिए है कि राष्ट्र एक दूसरे से लडते हैं।

राष्ट्र अशांत क्यों हैं?

क्योंकि राष्ट्र के अन्दर जो कई समाज हैं, वे एक दूसरे से ईर्ष्या और द्वेष करते हैं और लडते हैं।

हर समाज के अन्दर भी जितने सदस्य हैं, वे भी आपस में किसी न किसी कारण लडते ही रहते हैं।

वह इसलिए कि व्यक्ति अशांत है।

जब तक व्यक्ति अशांत है, न समाज शांत हो सकता है, न कि राष्ट्र, न विश्व।

व्यक्ति अपने स्वार्थ का ही सोचेगा तो वह अशांत ही रहेगा।

व्यक्ति स्वातंत्र्य के ऊपर अधिक जोर देना भी अशांति का कारण बन सकता है, अधिक जोर देना, अमित जोर देना।

संतुलित होना चाहिए।

व्यक्ति का हित, समाज का हित, राष्ट्र का हित और विश्व का हित- ये सारे संतुलित होना चाहिए।

यह नहीं कह रहा हूं कि व्यक्ति अपना हित न देखें।

अपना हित अगर हम नहीं देंखेंगे तो कैसे होगा?

अपना हित जरूर देखो।

साथ ही साथ दूसरों का भी।

यह है गुण।

दोष वह है जिससे हमें हानि है, या दूसरों को, या दोनों को।

भगवान कहते हैं मुझे ऐसा व्यक्ति पसंद है-

यस्मान्नोद्विजते लोको लोकान्नोद्विजते च यः।
हर्षामर्षभयोद्वेगैर्मुक्तो यः स च मे प्रियः॥

जो दूसरों को उद्वेग नही देता और खुद भी जिसे उद्वेग नही होता।

भाव परस्पर होना चाहीए।

ऐसा नहीं कि वह मेरा भला करता ही रहेगा ओर मैं उसकी परवाह नही करूंगा।

गीता कहती है-

परस्परं भावयन्तः श्रेयः परमवाप्स्यथ।

श्रेय तभी हो सकता है जब सब एक दूसरे का ख्याल रखेंगे।

व्यक्ति समाज, राष्ट्र, और विश्व का ख्याल रखेगा।

समाज व्यक्ति का ख्याल रखेगा।

और राष्ट्र समाज और व्यक्ति का।

इस प्रकार की पारस्परिक भावना गीत का आशय है।

आप एक कुर्सी पर बैठे हो।

अगर उस कुर्सी का एक पैर टूटा है तो कैसे होगा?

शरीर में आत्मा का भी यही अवस्था है।

शरीर जिसका स्थूल, सूक्ष्म और कारण, ये तीनों अंग हैं, किसी भी एक अंग का दूषित होने से आत्मा असंतुलित हो जाएगी।

शरीर आत्मा के लिए आसन है।

सबसे अंदर जो विशुद्धात्मा है वह तो निर्गुण है।

उसे कभी कुछ नहीं होता।

लेकिन जिस आत्मा का हम शक्ति महसूस करते हैं कि कोई अन्दर से मजबूत है, किसी भी परिस्थिति का सामना कर सकता है, तो कोई निरबल, तुरंत हिम्मत हार जाता है।

ऐसा होता है न?

इस आत्मा की शक्ति की ही बात कर रहा हूं।

इस आत्मा में संस्कार की आवश्यक्ता है।

तीन अंगों वाला संस्कार।

दोषों को निकालना।

क्या है आत्मा से संबन्धित दोष?

काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मात्सर्य, ईर्ष्या, दोषान्वेषण, हिंसा ,परनिन्दा ,पिशुनता।

और गुणों का स्थापन।

दोषों को निकाला और गुणों को स्थापित करना।

क्या क्या हैं आत्मा से संबन्धित गुण?

क्षमा, दया, करुणा, सहनशीलता, अहिंसा।

इस आत्मा की अपूर्णता है ज्ञान का अभाव।

सही ज्ञान को अर्जित करने से यह आत्मा परिपूर्ण होकर चारों ओर प्रकाश फैलाने लगेगा।

इसके लिए साधन क्या है यही गीता हमें सिखाती है।


Recommended for you

देवयुग में धरती पर भी स्वर्ग था- साइबीरिया

देवयुग में धरती पर भी स्वर्ग था- साइबीरिया

इससे भी ऊपर, उत्तर समुद्र तक रूस, सायबीरिया- यह प्रदेश भूम�....

Click here to know more..

हनुमान जी बने बाली के मंत्री

हनुमान जी बने बाली के मंत्री

Click here to know more..

दक्षिणामूर्ति द्वादश नाम स्तोत्र

दक्षिणामूर्ति द्वादश नाम स्तोत्र

अथ दक्षिणामूर्तिद्वादशनामस्तोत्रम् - प्रथमं दक्षिणामू�....

Click here to know more..