शिव संहिता के अनुसार अनाहत चक्र को जागृत करने से साधक को अपूर्व ज्ञान उत्पन्न होता है, अप्सराएं तक उस पर मोहित हो जाती हैं, त्रिकालदर्शी बन जाता है, बहुत दूर का शब्द भी सुनाई देता है, बहुत दूर की सूक्ष्म वस्तु भी दिखाई देती है, आकाश से जाने की क्षमता मिलती है, योगिनी और देवता दिखाई देते हैं, खेचरी और भूचरी मुद्राएं सिद्ध हो जाती हैं। उसे अमरत्व प्राप्त होता है। ये हैं अनाहत चक्र जागरण के लाभ और लक्षण।
अनाहत चक्र में बारह पंखुडियां हैं। इनमें ककार से ठकार तक के वर्ण लिखे रहते हैं। यह चक्र अधोमुख है। इसका रंग नीला या सफेद दोनों ही बताये गये है। इसके मध्य में एक षट्कोण है। अनाहत का तत्त्व वायु और बीज मंत्र यं है। इसका वाहन है हिरण। अनाहत में व्याप्त तेज को बाणलिंग कहते हैं।
अनाहत चक्र में पिनाकधारी भगवान शिव विराजमान हैं। अनाहत चक्र की देवी है काकिनी जो हंसकला नाम से भी जानी जाती है।
महायोगी गोरखनाथ जी के अनुसार अनाहत चक्र और उसमें स्थित बाणलिंग पर प्रतिदिन ४८०० सांस लेने के समय तक (५ घंटे २० मिनट) ध्यान करने से यह जागृत हो जाता है।
एक बहुत ही सरल साधना पद्धति है। इसे अनाहत-नाद-साधना या अनहद-नाद-साधना कहते हैं। इसमें साधक प्रातः काल शरीर को स्वच्छ करके एक एकांत स्थान पर शवासन पर लेट जाता है। दोनों अंगूठों से दोनों कानों को बन्द करता है। आंखें बन्द र�....
एक बहुत ही सरल साधना पद्धति है।
इसे अनाहत-नाद-साधना या अनहद-नाद-साधना कहते हैं।
इसमें साधक प्रातः काल शरीर को स्वच्छ करके एक एकांत स्थान पर शवासन पर लेट जाता है।
दोनों अंगूठों से दोनों कानों को बन्द करता है।
आंखें बन्द रखता है।
शब्द अपने आप सुनाई देना शुरु होगा।
उस पर मन को एकाग्र करता है।
जानकारी के लिए बता रहा हूं; इतना सुनकर कल से शुरू मत कीजिए।
हर साधना पद्धति में सूक्ष्म तत्त्व है।
गुरुमुख से सीखकर ही कीजिए।
पायल की झंकार जैसा श्ब्द सुनाई दिया तो वह रुद्र-मंडल का है।
समुद्र के लहरों जैसा शब्द विष्णु-मंडल का है।
मृदंग जैसा शब्द ब्रह्मा के मंडल का है।
शंख जैसा शब्द सहस्रार का है।
तुरही का शब्द आनंद-मंडल का है।
वेणुनाद चिदानन्द-मंडल का है।
बीन का शब्द सच्चिदानन्द-मंडल का है।
सिंह का गर्जन अखण्ड-अर्धमात्रा-मंडल का है।
नफीरी का शब्द अगम-मंडल का है।
बुलबुल जैसा शब्द अलक्ष्य-मंडल का है।
विराट में कुल मिलाकर ३६ मंडल हैं।
इनमे से १० मंडलों के शब्द ही हमें सुनाई देते है।
बाकी के भी शब्द हैं; पर कानों से सुनाई नही देते।
इन १० मंडलों के नादों पर एकाग्रता दृढ हो जाने पर आगे की प्रगती अपने आप हो जाएगी।
यह है अनहद-नाद-साधना।
गुरु नानकजी, कबीरदास, रैदास जैसे महान संतों ने इसका उपदेश दिया है।
अनाहत का अर्थ है बिना आहत का, बिना प्रहार का।
वाद्य को बजाने उस मे जोर देना होता है: हाथ से, उंगलियों से, डंडे से या फूंक मारकर।
तभी वाद्य बजते है।
बिना प्रहार का ही जो शब्द सुनाई देता है, वह है अनाहत।
कुण्डलिनी-योग में हृदय स्थान में जो कमल है, इसका नाम है अनाहत।
यही इन शब्दों का स्रोत है।
क्योंकि हृदय कमल के अन्दर है चिदाकाश।
इस चिदाकाश के अन्तर्गत ही ये सारे ३६ मंडल है।