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रेवती नक्षत्र का उपचार और उपाय क्या है?

जन्म से बारहवां दिन या छः महीने के बाद रेवती नक्षत्र गंडांत शांति कर सकते हैं। संकल्प- ममाऽस्य शिशोः रेवत्यश्विनीसन्ध्यात्मकगंडांतजनन सूचितसर्वारिष्टनिरसनद्वारा श्रीपरमेश्वरप्रीत्यर्थं नक्षत्रगंडांतशान्तिं करिष्ये। कांस्य पात्र में दूध भरकर उसके ऊपर शंख और चन्द्र प्रतिमा स्थापित किया जाता है और विधिवत पुजा की जाती है। १००० बार ओंकार का जाप होता है। एक कलश में बृहस्पति की प्रतिमा में वागीश्वर का आवाहन और पूजन होता है। चार कलशों में जल भरकर उनमें क्रमेण कुंकुंम, चन्दन, कुष्ठ और गोरोचन मिलाकर वरुण का आवाहन और पूजन होता है। नवग्रहों का आवाहन करके ग्रहमख किया जाता है। पूजा हो जाने पर सहस्राक्षेण.. इस ऋचा से और अन्य मंत्रों से शिशु का अभिषेक करके दक्षिणा, दान इत्यादि किया जाता है।

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इनमें से कौनसा है ब्रह्माजी का मन्दिर ?

सृष्टि, स्थिति और लय के एक चक्र को एक कल्प कहते हैं। कल्प की शुरुआत में ब्रह्मा द्वारा विश्व की रचना होती है ,फिर विष्णु द्वारा उसका पालन होता है ,और अंत में महादेव द्वारा उसका संहार होता है। एक कल्प की अवधि है ४.३२ अरब साल। इस....

सृष्टि, स्थिति और लय के एक चक्र को एक कल्प कहते हैं।
कल्प की शुरुआत में ब्रह्मा द्वारा विश्व की रचना होती है ,फिर विष्णु द्वारा उसका पालन होता है ,और अंत में महादेव द्वारा उसका संहार होता है।
एक कल्प की अवधि है ४.३२ अरब साल।
इस कल्प को १४ मन्वन्तरों में भाग दिया है।
हर एक मन्वन्तर में इकत्तर महायुग (चतुर्युग) होते हैं।
हर एक मन्वन्तर का एक स्वामी हैं।
सबसे पहले स्वायंभुव, उसके बाद स्वारोचिष इत्यादि।
वर्तमान मन्वन्तर के अधीश हैं वैवस्वत।
राजा ने प्रार्थना की: मेरा पुत्र मन्वन्तर के अधिपति बनें।
प्रमुच महर्षि ने कहा: देवी भगवती की आराधना कीजिए।
श्रीमद् देवी भागवत पंचम वेद के रूप में प्रसिद्ध है।
उसका पाँच बार श्रवण कीजिए।
आप वैसे ही पुत्र पाएँगे जो आप चाहते हैं।
महर्षि से विदा लेकर राजा और पत्नी अपनी राजधानी की ओर निकल पडे।
राजधानी पहुँचकर राजा राज्य-कार्यों में व्यस्त हो गये।
एक बार लोमश महर्षि उनके दरबार में आये।
उनसे राजा ने निवेदन किया कि प्रमुच के आदेशानुसार पुत्र प्राप्ति के लिए वे खुद श्रीमद् देवी भागवत अनुष्ठान करें।
महर्षि ने कहा पराशक्ति जगदम्बा न केवल मानव, देवों की और दानवों की भी आराध्या है।
उन पर आपकी भक्ति जागृत हो गयी तो समझ लेना आपका काम बन गया।
श्रीमद् देवी भागवत का श्रवण ही काफी है समस्त कामनाओं की पूर्ति के लिए।
शुभ दिन देखकर उन्होंने कथा प्रारम्भ की।
कथा समाप्त होने पर नवार्ण मन्त्र से हवन, ब्राह्मण भोजन और कन्यापूजा भी सम्पन्न हो गये।
कुछ ही समय बाद दुर्दम–रेवती दम्पती को एक बेटा हुआ।
उसका नाम रखा गया रैवत।
समस्त विद्याओं में निपुण धर्मिष्ठ,अस्त्र शस्त्र विद्याओं में अग्रणी रैवत, पाँचवें मन्वन्तर का अधिपति बने।
यह सब जगदम्बा पराशक्ति के आशीर्वाद से ही हुआ।
भगवान कार्तिकेय बोले: यह है संक्षेप में श्रीमद् देवी भागवत की महिमा।
श्रीमद् देवी भागवत की महिमा को पूरी तरह से बताना या जान लेना किसी की भी बस की बात नहीं है।
अगस्त्य महर्षि भगवान कार्तिकेय की पूजा करके, उनका शुक्रिया अदा करके चले गये।
सूतजी ने ऋषि-मुनियों से कहा: यह है श्रीमद् देवी भागवत की महिमा।
जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक इसका पाठ या श्रवण करेगा उसे सारे भोग और अंत में मोक्ष भी प्राप्त हो जाएँगे।
इस कथा को अगर श्रद्धा के साथ नहीं सुना तो कोई प्रयोजन नहीं है।
जितना भी सुन रहे हो उसके बीच रुकावट आने मत दो।
श्रीमद् देवी भागवत सुनते वक्त बीच में छोडकर मत जाओ।
श्रीमद् देवी भागवत नरक यातनाओं से बचने का उपाय है।
जो भी इसके श्रवण में विघ्न डालेगा वह करोड़ों जन्म तक नरक यातना भोगेगा।
सभी पुराण सुनने से जितना फल मिलता है उसका सौ गुना फल मिलता है श्रीमद् देवी भागवत को सुनने से।
जैसे नदियों में गंगा, देवों में महादेव, काव्यों में रामायण, प्रकाश वालों में सूर्य, आनन्द देने वालों में चन्द्रमा, गंभीरता में समुद्र, सहनशीलता में पृथ्वी, मंत्रों में गायत्री; वैसे ही पुराणों में सर्वश्रेष्ठ है श्रीमद् देवी भागवत।
किसी भी तरह देवी भागवत का नौ बार श्रवण कर लिया तो समझ लेना जीवन्मुक्त हो जाओगे।
शत्रु जनित बाधाएं , अकाल, महामारी, देश में विद्रोहियों द्वारा अशांति, भूत प्रेत जनित उपद्रव:- इन सबके लिए उपाय है देवी भागवत कथा।
राज्य प्राप्ति, संतान प्राप्ति, वधू प्राप्ति, वर प्राप्ति, रक्षा प्राप्ति, धन प्राप्ति: हर एक चीज़ के लिए महामाया का अनुग्रह पाया जा सकता है श्रीमद् देवी भागवत के श्रवण से।
इस पुराण के आधे श्लोक की रचना देवी भगवती ने खुद की है।
बाद में यही आधा श्लोक विस्तृत होकर श्रीमद् देवी भागवत पुराण बना।
देवी भगवती ही गायत्री माता है।
गायत्री मन्त्र से बढ़कर कोई मंत्र नहीं, कोई तप नहीं, कोई धर्म नहीं, कोई देवता नहीं।
वही गायत्री माता देवी भागवत में विराजती है अपने सारे रहस्यों सहित।
गायत्री महिमा इस का भाग है , देवी-गीता इसका भाग है, सारा धर्म इसमें है।
श्रीमद् देवी भागवत के समान दूसरा कोई भी ग्रंथ नहीं है।
इसको सदा सुनो, सुनते ही रहो, बार बार सुनो।
इस सम्पूर्ण जगत को उस देवी भगवती की चरण कमलों की धूल से ही ब्रह्मा ने बनाया, उसी का भगवान विष्णु पालन करते हैं, उसी का संहार भोलेनाथ करते हैं।
त्रिदेव, देवी माँ का आश्रय लेकर ही अपने अपने कार्य करते हैं।
ऐसी देवी भगवती को बार बार नमस्कार करता हूँ।
यत्पादपङ्कजरजः समवाप्य विश्वं ब्रह्मा सृजत्यनुदिनं च विभर्ति विष्णुः।
रुद्रश्च संहरति नेतरथा समर्थास्तस्यै नमोस्तु सततं जगदम्बिकायै।

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