इला। इला पैदा हुई थी लडकी। वसिष्ठ महर्षि ने इला का लिंग बदलकर पुरुष कर दिया और इला बन गई सुद्युम्न। सुद्युम्न बाद में एक शाप वश फिर से स्त्री बन गया। उस समय बुध के साथ विवाह संपन्न हुआ था।
पुरूरवा बुध और इला (सुद्युम्न) का पुत्र है।
उर्वशी स्वर्गलोक से ब्रह्मा द्वारा श्रापित होकर धरती पर आयी और पुरूरवा की पत्नी बन गयी थी।उन्होंने छः पुत्रों को जन्म दिया।
सूत जी ने कहा: और एक जगह पर श्रीमद् देवी भागवत के माहात्म्य के बारे में बताया है। अगस्त्य महर्षि भगवान कार्तिकेय के पास गये थे। महर्षि को भगवान ने बहुत सारी बातें सुनाई, जैसे कि वाराणसी में स्थित गंगा का महत्व, अन्य दिव्य स्था�....
सूत जी ने कहा: और एक जगह पर श्रीमद् देवी भागवत के माहात्म्य के बारे में बताया है।
अगस्त्य महर्षि भगवान कार्तिकेय के पास गये थे।
महर्षि को भगवान ने बहुत सारी बातें सुनाई, जैसे कि वाराणसी में स्थित गंगा का महत्व, अन्य दिव्य स्थानों का माहात्म्य।
महर्षि ने फिर कहा: आप कृपया मुझे श्रीमद् देवी भागवत के माहात्म्य के बारे में बताइए।
कार्तिकेय भगवान बोले: श्रीमद् देवी भागवत का महात्म्य तो अनंत है।
कोई भी इसके बारे में पूर्ण रूप से नही बता पायेगा।
हाँ आपको में कुछ बातें संक्षेप में सुनाता हूँ।
सच्चिदानंद रूपिणी शाश्वती साक्षात् जगदम्बा ही श्रीमद् देवी भागवत में शब्दों का रूप लेकर विराजमान रहती हैं।
कहीं पर भी अगर श्रीमद् देवी भागवत का ग्रन्थ दिखा तो समझ लेना साक्षात् देवी वहां पर बैठी है।
इसका पाठ और श्रवण से असाध्य कुछ भी नहीं है।
विवस्वान् के पुत्र थे श्राद्धदेव।
श्राद्धदेव को संतान प्राप्ति न होने पर वसिष्ठ महर्षि के आदेशानुसार उन्होंने पुत्रकामेष्टि किया, वही पुत्रकामेष्टि जो राजा दशरथ ने भी किया।
श्राद्धदेव की पत्नी थी श्रद्धा।
श्रद्धा चाहती थी कि उन्हें लडकी होवें।
श्रद्धा ने यज्ञ के पुरोहित के सामने अपनी इच्छा प्रकट की।
पुरोहित ने जब यज्ञ में आहुति दी तो इसी इच्छा को मन में रखा।
लड़की पैदा हुई।
उसका नाम इला रखा गया।
राजा लडकी को देख कर उदास हो गये|
उन्होंने वसिष्ठ जी से पूछा: यह कैसे हो गया?
माँगा था पुत्र और पुत्री कैसे?
वसिष्ठ महर्षि समझ गये कि क्या हुआ।
राजगुरु हैं, देश का हित करना तो पड़ेगा।
वसिष्ठ महर्षि ने अपनी तप-शक्ति से इला को तत्काल लडका बना दिया।
उसका जन्म संस्कार करके नाम भी बदल दिया, सुद्युम्न।
सुद्युम्न सारी विद्याओं में निपुण बन गये।
नौजवान सुद्युम्न एक दिन अपने घोड़े पर शिकार करने जंगल चले गये अपने दोस्तों के साथ।
शिकार करते करते वे सब हिमालय की घाटी के एक जंगल पहुँचे।
वह एक शापित जंगल था।
पहले कभी भगवान भोलेनाथ पार्वती जी के साथ वहां रमण कर रहे थे।
उस समय उनका दर्शन करने ऋषि-मुनि वहां पहुँचे।
अचानक उन्हें देखकर पार्वती जी शर्मिन्दा हो गयी।
मुनिगण को अपनी गलती का एहसास हुआ तो वे तुरंत वहाँ से चले गये।
गुस्से में आकर भगवान ने शाप दिया कि आज के बाद जो भी आदमी इस जंगल में आयेगा वह औरत बन जाएगा।
सुद्युम्न को यह पता नहीं था।
जंगल पहुँचते ही सुद्युम्न औरत बन गया।
सारे दोस्त भी औरतें हो गये।
और घोडे भी घोडियाँ बन गये।
वे सब उसी जंगल में रहने लगे।
घूमते फिरते सुद्युम्न एक बार भगवान बुध का आश्रम पहुँचे तो उस सुन्दरी को देखकर भगवान बुध मोहित हो गये।
सुन्दरी भी बुध पर आसक्त हो गयी और उनके साथ रहकर रमण करने लगी।
कुछ समय बाद उन दोनों का एक बेटा हुआ पुरूरवा।
समय बीतने पर सुद्युम्न को अपना पूर्व वृत्तान्त याद आया और वे आश्रम से चल पडे।
वसिष्ठ महर्षि के पास जाकर उन्होंने बताया कि मुझे वापस पुरुष बनना है।
वसिष्ठ जी कैलास पहुंचकर शंकर भगवान की पूजा करने लगे।
भगवान प्रकट हो गये तो सुद्युम्न को फिर से पुरुषत्व दिलाने उनसे विनती की महर्षि ने।
भगवान ने कहा: मैं इतना कर सकता हूँ कि सुद्युम्न एक महिना पुरुष रहेगा तो अगला महीना स्त्री।
महर्षि तृप्त नहीं हुए।
वे जगदम्बिका पार्वती जी के पास पहुंचकर उनकी स्तुति करने लगे।
स्तुति से प्रसन्न देवी माता बोली: आप सुद्युम्न के घर जाकर मेरी पूजा कीजिए ,नौ दिनों तक सुद्युम्न को श्रीमद् देवी भागवत सुनाइए, सब सही हो जाएगा।
वापस पहुंचकर वसिष्ठ जी ने सुद्युम्न को देवी की पूजा विधि का उपदेश किया और आश्विन के शुक्ल पक्ष में नवाह करवाया।
उसके बाद सुद्युम्न हमेशा के लिए पुरुष बन गये।
उनका राज्याभिषेक हुआ उन्होंने बहुत समय तक अच्छे से शासन किये और बाद में राज्य अपने पुत्रों को सौंपकर देवी लोक चले गये।
देवी की इस महिमा को केवल सुनने से सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।
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