ॐ शनि कांकुली पाणीयायाम् । पालनहरि आरिक्षणी । नेम्बेंदिविरान्दिन यदू यदू । जाणनिरान्द्रि । पाषाण युगे युगे धर्मयन्त्री । फाअष्टष्यति नजर याणी धुम्रयाणी । धनम् प्रजायायाम् घनिष्टयति । पादानिदर पादानिदर नमस्तेते नमस्तेते । आदरणीयम् फलायामी फलायामी । इति सिद्धम् - प्रति दिन ७२ बार बोलें ।
सबके अन्दर दिव्य चक्षु विद्यमान है। इस दिव्य चक्षु से ही हम सपनों को देखते हैं। पर जब तक इसका साधना से उन्मीलन न हो जाएं इससे बाहरी दुनिया नहीं देख सकते।
कालिका पुराण
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