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भारतीय संस्कृति व समाज के लिए जरूरी है। -Ramnaresh dhankar

Om namo Bhagwate Vasudevay Om -Alka Singh

गुरुजी का शास्त्रों की समझ गहरी और अधिकारिक है 🙏 -चितविलास

वेदधारा की वजह से मेरे जीवन में भारी परिवर्तन और सकारात्मकता आई है। दिल से धन्यवाद! 🙏🏻 -Tanay Bhattacharya

वेदधारा के कार्य से हमारी संस्कृति सुरक्षित है -मृणाल सेठ

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आदित्य हृदय स्तोत्र के फायदे क्या हैं?

आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करने से भय और खतरों से सुरक्षा मिलती है। इससे प्रतिद्वंद्वियों के साथ लड़ाई में सफलता प्राप्त होती है।

ऐतिह्य की परिभाषा

ऐतिह्य उन पारंपरिक वृत्तांतों या किंवदंतियों को संदर्भित करती है जो किसी विशिष्ट व्यक्ति को जिम्मेदार ठहराए बिना पीढ़ियों से चली आ रही हैं। इन्हें विद्वानों और समुदाय द्वारा व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है और कायम रखा जाता है, जो सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत का एक हिस्सा है।

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देवकी किसका पुनर्जन्म है?

स्यमन्तक मणि और भगवान श्रीकृष्ण के नाम सुनने पर ऋषिगण उत्सुक हो गये उस घटना के बारे में जानने के लिए। सूत जी बोले: सत्राजित द्वारका में रहता था और वह बहुत बड़ा सूर्य भक्त था। हमेशा सूर्यदेव की पूजा में लगा रहता था सत्राजित। ....

स्यमन्तक मणि और भगवान श्रीकृष्ण के नाम सुनने पर ऋषिगण उत्सुक हो गये उस घटना के बारे में जानने के लिए।
सूत जी बोले: सत्राजित द्वारका में रहता था और वह बहुत बड़ा सूर्य भक्त था।
हमेशा सूर्यदेव की पूजा में लगा रहता था सत्राजित।
उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर सूर्य भगवान ने उसे सूर्यलोक का दर्शन कराया और लौटते वक्त अति अपूर्व स्यमन्तक मणि उसे भेंट के रूप में दे दिया।
स्यमन्तक मणि को अपने गले में पहनकर सत्राजित द्वारका पहुंचा तो उसकी प्रभा से लोगों ने सोचा कि भगवान सूर्य खुद आ गए हैं द्वारका में।
वे सब श्रीकृष्ण के पास पहुंचकर बोले: सूर्यदेव आपसे मिलने चले आये हैं।
भगवान ने हस दिया।
यह सूर्यदेव नहीं है, यह तो अपना सत्राजित है जिसने सूर्यदेव का दिया हुआ मणि पहन रखा है ।
सत्राजित ने विधिपूर्वक मणि को अपने घर स्थापित किया।
जहां पर वह मणि है, वहाँ मारक बीमारी, महामारी, अकाल, भुखमरी , भूकम्प, बाढ जैसे संकट नहीं होते।
और वह मणि हर रोज़ बीस तोला सोना भी देता है।
सत्राजित का भाई प्रसेन एक दिन वह मणि पहनकर जंगल में शिकार कर रहा था तो उसे एक शेर ने मार दिया और शेर ने मणि भी छीन कर ले लिया।
भालुओं के राजा थे जाम्बवान।
जाम्बवान उसी जंगल में रहते थे।
जब जाम्बवान ने मणि पहना हुआ शेर को अपने गुफे के द्वार पर देखा तो उसे मारकर मणि अपने पास रख लिया।
फिर जांबवान ने मणि अपने बेटे को खेलने दे दिया।
प्रसेन वापस नहीं लौट रहा था तो सत्राजित परेशान हो गया कि कहीं किसी ने मणि के लिए उसे मारा तो नहीं।
द्वारकापुर में एक अफवाह फैली कि श्रीकृष्ण ने ही मणि के लिए प्रसेन को मार डाला।
अपने ऊपर लगी बदनामी को मिटाने भगवान निकले प्रसेन को खोजने, कुछ और लोगों को साथ मे लेकर।
जंगल में पहले उन्हें प्रसेन की लाश मिली।
खून के निशान का पीछा करके गुफा पहुँचे तो वहां मिला मरा हुआ शेर।
लेकिन मणि गायब था।
जिसने मणि लिया है वह उस गुफा के अन्दर ही रहेगा।
भगवान ने कहा: मैं गुफा के अन्दर जा रहा हूँ।
जब तक मैं नहीं लौटूँ तुम लोग यहीं पर रहो।
भगवान गुफा के अंदर चले गये।
वहाँ उन्होने मणि पहने हुए जांबवान के बेटे को देखा।
उससे भगवान ने मणि छीनने की कोशिश की तो उसकी मां ज़ोर ज़ोर से चिल्लाकर रोने लगी।
यह सुनकर जांबवान वहां चला आया और भगवान और जांबवान के बीच सत्ताईस दिन तक तीव्र लड़ाई चली।
जो साथ में गये थे उन्होंने बारह दिन तक गुफे के बाहर इन्तज़ार किया और उसके बाद डरके मारे वापस चले गये।
द्वारका पहुंचकर उन्होंने सबको खबर दिया कि क्या हुआ।
सब घबराने लगे कि अगर भगवान को कुछ हो गया है तो क्या होगा?
वसुदेव जी बेहोश हो गये।
जब उनको होश वापस आया तो सब लोग मिलकर सोचने लगे कि क्या करें।
तब तक नारद महर्षि वहां पहुँचे।
सबने मिलकर उनका सत्कार किया।
नारदजी ने पूछा: क्यों उदास हो सब लोग?
वासुदेव जी बोले: भगवान लापता हैं।
आप कृपया कोई उपाय बताइए जिससे भगवान वापस लौटें।
नारदजी बोले: माता अम्बिका को प्रसन्न करो।
माता तुम्हारा कल्याण करेगी।
वसुदेव जी ने पूछा: कौन है यह देवी, कैसा प्रभाव है उनका, उनका पूजन कैसे किया जाए?
हमें विस्तार से बताइए।
यह भगवती शाश्वत हैं, नित्य हैं, सच्चिदानंद-स्वरूपा हैं।
श्रेष्ठों में से सबसे श्रेष्ठ है यह देवी।
यह समस्त जगत उनके द्वारा व्याप्त है।
ऐसा कोई स्थान नहीं जहां जगदम्बा नहीं है।
इनकी पूजा करने के प्रभाव से ब्रह्मा सृष्टि कर पाते हैं।
इनकी स्तुति करके श्रीमन्नारायण ने जगत को मधु और कैटभ जैसे राक्षसों के डर से बचाया और वे सम्पूर्ण विश्व का देखभाल करते हैं।
इस देवी के कृपा कटाक्ष से ही शम्भु भुवन का संहार कर पाते हैं।

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