नैमिष्यारण में सारे ऋषि-मुनि, संत और ज्ञानी लोग इकट्ठा हो गये थे।
कलियुग की शुरुआत थी।
कलियुग में पाप दिन ब दिन बढ़ता है और पाप करने की परिस्थिति और संभावना भी बढ़ती हैं।
ऋषि-मुनियों को भी इन परीक्षाओं का सामना करना पडता है।
कलि प्रभाव से बचने के लिए एक ही उपाय था; ऐसी जगह पर रहो जहां कलि न पहुँच पाये और वह जगह थी नैमिषारण्य।
कलि मतलब कलियुग का अभिमानी देवता जिनके काबू में कलियुग के सारे व्यवहार हैं।
ऋषि-मुनियों ने नैमिषारण्य में बहुत सारा यज्ञ भी किया।
अब उनको वहीं पर समय बिताना था अगले सत्य युग की शुरुआत तक।
व्यास जी के प्रिय शिष्य सूत जी भी थे वहां पर।
और उनसे वे सब ऋषि-मुनि पुराण की कहानियाँ सुन रहे थे।
उन्होंने सूत जी से कहा – आपसे हम लोग कई कल्याणमयी कहानियां सुन चुके हैं।
इन कहानियों को सुनना हमारा सौभाग्य है क्योंकि इनको सुनने से पुण्य मिलता है।
कथा श्रवण से पुण्य कैसे मिलता है?
कथा श्रवण को मनबहलाव मत समझो।
मंदिर का क्या महत्व है, ईट-पत्थर से बना हुआ है वह भी, साधारण इमारत के सामने कोई माथा नहीं टेकता, वह भी ईट-पत्थर से ही बना हुआ है।
मंदिर में भगवान रहते हैं, साधारण इमारत में आदमी रहता है।
भगवान का निवास स्थान होने से मंदिर को सम्मान मिलता है जब कि वह भी ईट पत्थर से ही बना हुआ है।
भगवान का नाम, भगवान की स्तुति, ये सब साधारण शब्द नहीं हैं, इन में भगवान की शक्ति है, ऊर्जा है।
जब भगवान का नाम सुनोगे , भगवान की महिमा सुनोगे, वह शक्ति, वह ऊर्जा कानों के माध्यम से अंदर घुसकर मन में समा जाएगा, दिल में समा जाएगा, पूरे शरीर में समा जाएगा ।
तुम्हारा शरीर धीरे धीरे एक मंदिर बन जाएगा जिसमें शब्द स्वरूपी भगवान विराजमान होंगे।
इसलिए भगवान की कथाएँ हमेशा हमेशा सुनते रहो, उनका नाम हमेशा हमेशा लेते रहो, उनकी स्तुति हमेशा हमेशा करते रहो।
भगवान श्री हरि की अवतार कथा तो सारे पापों से छुटकारा देनेवाली है।
शंकर भगवान का अद्भुत चरित्र ,भस्म की महिमा और रुद्राक्ष माहात्म्य ये सब हम आप से सुन चुके हैं; कह रहे हैं ऋषि लोग।
अब हमें ऐसे कुछ सुनाइए जो सुखभोग और मोक्ष दोनों एक साथ में दे सकें।
हमने सुना है कि मोक्ष, मुक्ति पाने के लिये वैराग्य होना ज़रूरी है।
सांसारिक सुख भोगों से सांसारिक विषयों से मुँह फेरने वाले को ही मोक्ष मिलता है।
लेकिन यहां पर संत महात्मा लोग सूत जी से पूछते हैं, ऐसा कोई उपाय है क्या जिससे भोग और मोक्ष दोनों मिल सकता है ?
मुनियों ने कहा, ऐसे कुछ सुनाइए जिसके द्वारा कलियुग में भी सिद्धियां प्राप्त हो जाएँ।
१. शिव २. शक्ति ३. सदाशिव ४. ईश्वर ५. शुद्धविद्या ६. माया ७. कला ८. विद्या ९. राग १०. काल ११. नियति १२. पुरुष १३. प्रकृति १४. बुद्धि १५. अहङ्कार १६. मन १७. श्रोत्र १८. त्वक् १९. चक्षु २०. जिह्वा २१. घ्राण २२. वाक् २३. पाणि २४. पाद २५. पायु २६. उपस्थ २७. शब्द २८. स्पर्श २९. रूप ३०. रस ३१. गन्ध ३२. आकाश ३३. वायु ३४. वह्नि ३५. जल ३६.पृथिवी।
शिव और शक्ति एक ही सिक्के के दो पहलू जैसे हैं। जैसे चन्द्रमा के बिना चांदनी नहीं, चांदनी के बिना चन्द्रमा नहीं; शिव के बिना शक्ति नहीं और शक्ति के बिना शिव नहीं।
न दीयते खण्ड्यते बध्यते- स्वतंत्र, जिसे बांधा नहीं जा सकता। अदिति बारह आदित्य और वामनदेव की माता थी। दक्षकन्या अदिति के पति थे कश्यप प्रजापति।
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