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Video - अथर्व वेद से वाणिज्य सूक्त 

 

अथर्व वेद से वाणिज्य सूक्त

 

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गृह्यसूत्र

गृह्यसूत्र वेदों का एक हिस्सा है, जिसमें परिवार और घरेलू जीवन से संबंधित संस्कारों, अनुष्ठानों, और नियमों का विवरण होता है। यह वैदिक काल के सामाजिक और धार्मिक जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं को दर्शाता है। गृह्यसूत्रों में विभिन्न प्रकार के संस्कारों का वर्णन है, जैसे कि जन्म, नामकरण, अन्नप्राशन (पहली बार अन्न ग्रहण करना), उपनयन (यज्ञोपवीत संस्कार), विवाह, और अंत्येष्टि (अंतिम संस्कार) आदि। ये संस्कार जीवन के प्रत्येक महत्वपूर्ण चरण को चिह्नित करते हैं। प्रमुख गृह्यसूत्रों में आश्वलायन गृह्यसूत्र, पारस्कर गृह्यसूत्र, और आपस्तंब गृह्यसूत्र शामिल हैं। ये ग्रंथ विभिन्न ऋषियों द्वारा रचित हैं और विभिन्न वैदिक शाखाओं से संबंधित हैं।गृह्यसूत्रों का धार्मिक महत्व बहुत अधिक है क्योंकि ये न केवल व्यक्तिगत जीवन के संस्कारों का विवरण प्रदान करते हैं बल्कि समाज में धार्मिक और नैतिक मानकों की स्थापना भी करते हैं।

तिरुपति बालाजी का मंदिर कहां है?

तिरुपति बालाजी मंदिर आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में है। चेन्नई से दूरी १३३ कि.मी.। हैदराबाद से दूरी ५६० कि.मी.।

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मृत्यु के तीसरे दिन क्या होता है?

इन्द्रमहं वणिजं चोदयामि स न ऐतु पुरएता नो अस्तु । नुदन्न् अरातिं परिपन्थिनं मृगं स ईशानो धनदा अस्तु मह्यम् ॥१॥ ये पन्थानो बहवो देवयाना अन्तरा द्यावापृथिवी संचरन्ति । ते मा जुषन्तां पयसा घृतेन यथा क्रीत्वा धनमाहराणि ॥२....

इन्द्रमहं वणिजं चोदयामि स न ऐतु पुरएता नो अस्तु ।
नुदन्न् अरातिं परिपन्थिनं मृगं स ईशानो धनदा अस्तु मह्यम् ॥१॥
ये पन्थानो बहवो देवयाना अन्तरा द्यावापृथिवी संचरन्ति ।
ते मा जुषन्तां पयसा घृतेन यथा क्रीत्वा धनमाहराणि ॥२॥
इध्मेनाग्न इच्छमानो घृतेन जुहोमि हव्यं तरसे बलाय ।
यावदीशे ब्रह्मणा वन्दमान इमां धियं शतसेयाय देवीम् ॥३॥
इमामग्ने शरणिं मीमृषो नो यमध्वानमगाम दूरम् ।
शुनं नो अस्तु प्रपणो विक्रयश्च प्रतिपणः फलिनं मा कृणोतु ।
इदं हव्यं संविदानौ जुषेथां शुनं नो अस्तु चरितमुत्थितं च ॥४॥
येन धनेन प्रपणं चरामि धनेन देवा धनमिच्छमानः ।
तन् मे भूयो भवतु मा कनीयोऽग्ने सातघ्नो देवान् हविषा नि षेध ॥५॥
येन धनेन प्रपणं चरामि धनेन देवा धनमिच्छमानः ।
तस्मिन् म इन्द्रो रुचिमा दधातु प्रजापतिः सविता सोमो अग्निः ॥६॥
उप त्वा नमसा वयं होतर्वैश्वानर स्तुमः ।
स नः प्रजास्वात्मसु गोषु प्राणेषु जागृहि ॥७॥
विश्वाहा ते सदमिद्भरेमाश्वायेव तिष्ठते जातवेदः ।
रायस्पोषेण समिषा मदन्तो मा ते अग्ने प्रतिवेशा रिषाम ॥८॥

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