धर्मरूपाय विद्महे सत्यव्रताय धीमहि तन्नो रामः प्रचोदयात्
देवकार्यादपि सदा पितृकार्यं विशिष्यते । देवताभ्यो हि पूर्वं पितॄणामाप्यायनं वरम्॥ (हेमाद्रिमें वायु तथा ब्रह्मवैवर्तका वचन) - देवकार्य की अपेक्षा पितृकार्य की विशेषता मानी गयी है। अतः देवकार्य से पूर्व पितरों को तृप्त करना चाहिये।
रसातल में रहनेवाली सुरभि के दूध की धारा से क्षीरसागर उत्पन्न हुआ। क्षीरसागर के तट पर रहने वाले फेनप नामक मुनि जन इसके फेन को पीते रहते हैं।
कश्यप परीक्षित को बचाने जाते हैं
जादू टोने से बचने के लिए अथर्व वेद मंत्र
समं ज्योतिः सूर्येणाह्ना रात्री समावती । कृणोमि सत्यमू�....
Click here to know more..राम शरणागति स्तोत्र
विश्वस्य चात्मनोनित्यं पारतन्त्र्यं विचिन्त्य च। चिन्�....
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