राजा दिलीप के कोई संतान नहीं थी, इसलिए उन्होंने अपनी रानी सुदक्षिणा के साथ वशिष्ठ ऋषि की सलाह पर उनकी गाय नन्दिनी की सेवा की। वशिष्ठ ऋषि ने उन्हें बताया कि नन्दिनी की सेवा करने से उन्हें पुत्र प्राप्त हो सकता है। दिलीप ने पूरी निष्ठा और श्रद्धा के साथ नन्दिनी की सेवा की, और अंततः उनकी पत्नी ने रघु नामक पुत्र को जन्म दिया। यह कहानी भक्ति, सेवा, और धैर्य का प्रतीक मानी जाती है। राजा दिलीप की कहानी को रामायण और पुराणों में एक उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया जाता है कि कैसे सच्ची निष्ठा और सेवा से मनुष्य अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है।
सूर्य देव के श्राप से निर्धन होकर शनि देव अपनी मां छाया देवी के साथ रहते थे। सूर्य देव उनसे मिलने आये। वह मकर संक्रांति का दिन था। शनि देव के पास तिल और गुड के सिवा और कुछ नहीं था। उन्होंने तिल और गुड समर्पित करके सूर्य देव को प्रसन्न किया। इसलिए हम भी प्रसाद के रूप में उस दिन तिल और गुड खाते हैं।
दामोदराय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नः कृष्णः प्रचोदयात्....
दामोदराय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नः कृष्णः प्रचोदयात्
समृद्धि के लिए पद्मावती मंत्र
ह्रीं पद्मावति स्वाहा....
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शक्ति ही इस संपूर्ण विश्व का सृजन पालन और संहार करती है; ब�....
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प्रलयोदन्वदुदीर्णजल- विहारानिविशाङ्गम्। कमलाकान्तमण्....
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