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वेदधारा सनातन संस्कृति और सभ्यता की पहचान है जिससे अपनी संस्कृति समझने में मदद मिल रही है सनातन धर्म आगे बढ़ रहा है आपका बहुत बहुत धन्यवाद 🙏 -राकेश नारायण

वेदधारा ने मेरे जीवन में बहुत सकारात्मकता और शांति लाई है। सच में आभारी हूँ! 🙏🏻 -Pratik Shinde

वेदधारा की सेवा समाज के लिए अद्वितीय है 🙏 -योगेश प्रजापति

आपकी वेबसाइट ज्ञान और जानकारी का भंडार है।📒📒 -अभिनव जोशी

आपकी वेबसाइट बहुत ही अनोखी और ज्ञानवर्धक है। 🌈 -श्वेता वर्मा

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नवो नवो भवति जायमानोऽह्नां केतुरुषमेत्यग्रे।
भागं देवेभ्यो वि दधात्यायन् प्र चन्द्रमास्तिरति दीर्घमायुः॥

यह जो बार-बार नवजात होता है, वह दिनों का अग्रदूत बनता है। वह देवताओं को उनका भाग अर्पित करता हुआ आगे बढ़ता है। आगे बढ़ते हुए, वह चंद्रमा की तरह ऊपर उठता है और दीर्घायु प्रदान करता है।

इस मंत्र को सुनने से नवीनीकरण, ऊर्जा और दीर्घायु की प्राप्ति होती है। यह श्रोता को ब्रह्मांडीय चक्रों के साथ जोड़ता है, जैसे उगते सूर्य और चंद्रमा का अनंत पुनर्जन्म। इस मंत्र के माध्यम से दिव्य आशीर्वादों का आह्वान किया जाता है, जो शारीरिक और आध्यात्मिक शक्ति को बढ़ाते हैं और आंतरिक शांति प्रदान करते हैं। यह मंत्र श्रोता को दिव्य व्यवस्था से जोड़ता है, जीवन में सामंजस्य और संतुलन सुनिश्चित करता है। इसकी जप करने से दीर्घायु की प्राप्ति मानी जाती है, क्योंकि यह शरीर और आत्मा दोनों को पोषित करने वाली ब्रह्मांडीय ऊर्जाओं को आमंत्रित करता है, जिससे लंबा और संतुष्टिपूर्ण जीवन मिलता है।

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उत्तर प्रदेश की सीतामढ़ी के अलावा एक और जगह के जिस्के बारे में यह मान्यता है कि यहां पर सीता माता धरती में समाई थी । कहां है यह ?

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