चार्वाक दर्शन में सुख शरीरात्मा का एक स्वतंत्र गुण है। दुख के अभाव को चार्वाक दर्शन सुख नहीं मानता है।
व्यक्तिगत रूप से अगर मैं भारत का निवासी होता तो मैं कोई भी विदेशी प्रथा को तभी अपनाता जब मैं संतुष्ट होता कि मुझे ऐसा करना चाहिए। निश्चित रूप से मैं भारतीय अभिवादन को अंग्रेजी हाथ मिलाने के लिए नहीं छोड़ता। मैं इसमें कोई उद्देश्य नहीं देखता सिवाय नकल करने के, और इस तरह विदेशी सभ्यता की श्रेष्ठता को स्वीकारने के। - जॉन वुड्रॉफ (लेखक)
आयुष्टे विश्वतो दधदयमग्निर्वरेण्यः । पुनस्ते प्राण आयाति परा यक्ष्मं सुवामि ते ॥ आयुर्दा अग्ने हविषो जुषाणो घृतप्रतीको घृतयोनिरेधि । घृतं पीत्वा मधु चारु गव्यं पितेव पुत्रमभि रक्षतादिमम् ॥....
आयुष्टे विश्वतो दधदयमग्निर्वरेण्यः ।
पुनस्ते प्राण आयाति परा यक्ष्मं सुवामि ते ॥
आयुर्दा अग्ने हविषो जुषाणो घृतप्रतीको घृतयोनिरेधि ।
घृतं पीत्वा मधु चारु गव्यं पितेव पुत्रमभि रक्षतादिमम् ॥
प्राण प्रतिष्ठा कोई अन्ध विश्वास नहीं है
प्राण प्रतिष्ठा कोई अन्ध विश्वास नहीं है । जानिये....
Click here to know more..पाञ्चजन्य
नामक एक असुर की हड्डियां पाञ्चजन्य नामक शंख में बदल गईं, �....
Click here to know more..नारायण अष्टाक्षर माहात्म्य स्तोत्र
ॐ नमो नारायणाय । अथ अष्टाक्षरमाहात्म्यम् - श्रीशुक उवाच....
Click here to know more..