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आपकी वेबसाइट जानकारी से भरी हुई और अद्वितीय है। 👍👍 -आर्यन शर्मा

वेद पाठशालाओं और गौशालाओं के लिए आप जो अच्छा काम कर रहे हैं, उसे देखकर बहुत खुशी हुई 🙏🙏🙏 -विजय मिश्रा

वेदधारा की सेवा समाज के लिए अद्वितीय है 🙏 -योगेश प्रजापति

अपने परिवार की सुरक्षा के लिए प्रार्थना करती हूं -शोभा

आपकी वेबसाइट से बहुत सी महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है। -दिशा जोशी

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कृणुष्व पाजः प्रसितिं न पृथ्वीं याहि राजेवामवाꣳ इभेन ।
तृष्वीमनु प्रसितिं द्रूणानो ऽस्तासि विध्य रक्षसस्तपिष्ठैः ॥
तव भ्रमास आशुया पतन्त्यनु स्पृश धृषता शोशुचानः ।
तपूꣳष्यग्ने जुह्वा पतंगानसंदितो वि सृज विष्वगुल्काः ॥
प्रति स्पशो वि सृज तूर्णितमो भवा पायुर्विशो अस्या अदब्धः ।
यो नो दूरे अघशꣳसो यो अन्त्यग्ने माकिष्ट व्यथिरादधर्षीत् ॥
उदग्ने तिष्ठ प्रत्या तनुष्व न्यमित्राꣳ ओषतात्तिग्महेते ।
यो नो अरातिꣳ समिधान चक्रे नीचा तं धक्ष्यतसं न शुष्कम् ॥
ऊर्ध्वो भव प्रति विध्याध्यस्मदाविष्कृणुष्व दैव्यान्यग्ने ।
अव स्थिरा तनुहि यातुजूनां जामिमजामिंप्र मृणीहि शत्रून् ॥
स ते जानाति सुमतिं यविष्ठ य ईवते ब्रह्मणे गातुमैरत् ।
विश्वान्यस्मै सुदिनानि रायो द्युम्नान्यर्यो वि दुरो अभि द्यौत् ॥
सेदग्ने अस्तु सुभगः सुदानुर्यस्त्वा नित्येन हविषा य उक्थैः ।
पिप्रीषति स्व आयुषि दुरोणे विश्वेदस्मै सुदिना सासदिष्टिः ॥
अर्चामि ते सुमतिं घोष्यर्वाक् सं ते वावाता जरतामियं गीः ।
स्वश्वास्त्वा सुरथा मर्जयेमास्मे क्षत्राणि धारयेरनु द्यून् ॥
इह त्वा भूर्या चरेदुप त्मन् दोषावस्तर्दीदिवाꣳसम् अनु द्यून् ।
क्रीडन्तस्त्वा सुमनसः सपेमाभि द्युम्ना तस्थिवाꣳसो जनानाम् ॥
यस्त्वा स्वश्वः सुहिरण्यो अग्न उपयाति वसुमता रथेन ।
तस्य त्राता भवसि तस्य सखा यस्त आतिथ्यमनुषग्जुजोषत् ॥
महो रुजामि बन्धुता वचोभिस्तन्मा पितुर्गोतमादन्वियाय ।
त्वं नो अस्य वचसश्चिकिद्धि होतर्यविष्ठ सुक्रतो दमूनाः ॥
अस्वप्नजस्तरणयः सुशेवा अतन्द्रासो ऽवृका अश्रमिष्ठाः ।
ते पायवः सध्रियञ्चो निषद्याऽग्ने तव नः पान्त्वमूर ॥
ये पायवो मामतेयं ते अग्ने पश्यन्तो अन्धं दुरितादरक्षन् ।
ररक्ष तान्त् सुकृतो विश्ववेदा दिप्सन्त इद्रिपवो ना ह देभुः ॥
त्वया वयꣳ सधन्यस्त्वोतास्तव प्रणीत्यश्याम वाजान् ।
उभा शꣳसा सूदय सत्यतातेऽनुष्ठुया कृणुह्यह्रयाण ॥
अया ते अग्ने समिधा विधेम प्रति स्तोमꣳ शस्यमानं गृभाय ।
दहाशसो रक्षसः पाह्यस्मान् द्रुहो निदो मित्रमहो अवद्यात् ॥
रक्षोहणं वाजिनमा जिघर्मि मित्रं प्रतिष्ठमुप यामि शर्म ।
शिशानो अग्निः क्रतुभिः समिद्धः स नो दिवा स रिषः पातु नक्तम् ॥
वि ज्योतिषा बृहता भात्यग्निराविर्विश्वानि कृणुते महित्वा ।
प्रादेवीर्मायाः सहते दुरेवाः शिशीते शृङ्गे रक्षसे विनिक्षे ॥
उत स्वानासो दिवि षन्त्वग्नेस्तिग्मायुधा रक्षसे हन्तवा उ ।
मदे चिदस्य प्र रुजन्ति भामा न वरन्ते परिबाधो अदेवीः ॥

 

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गौ माता में कितने देवता रहते हैं?

गौ माता में सारे ३३ करोड देवता रहते हैं। जैसे: सींग के जड़ में ब्रह्मा और विष्णु, मध्य में महादेव, नोक में सारे तीर्थ, माथे पर गौरी, नाक में कार्तिकेय, आखों में सूर्य और चंद्रमा, मुंह में सरस्वती, गले में इंद्र, अपान में श्रीलक्ष्मी, शरीर के रोमों में तैंतीस करोड देवता।

राजा दिलीप की कहानी क्या है?

कामधेनु के श्राप की वजह से दिलीप को संतान नहीं हुई। महर्षि वसिष्ठ के उपदेश के अनुसार दिलीप ने कामधेनु की बेटी नन्दिनी की दिन रात सेवा की। एक बार एक शेर ने नन्दिनी को जगड लिया तो दिलीप ने अपने आप को नन्दिनी की जगह पर अर्पित किया। सेवा से खुश होकर नन्दिनी ने दिलीप को पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद दिया।

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ब्राह्मणम् - इन ग्रन्थों में प्रतिपाद्य विषय क्या है ?

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