अष्टम भाव के ऊपर चन्द्रमा, गुरु और शुक्र तीनों ग्रहों की दृष्टि हो तो देहांत के बाद भगवान श्रीकृश्ष्ण के चरणों में स्थान मिलेगा।
श्री शिवाय नमस्तुभ्यम् मंत्र जापने से शिव जी की कृपा, सद्बुद्धि का विकास, धन की प्राप्ति, अभीष्टों की सिद्धि, स्वास्थ्य, संतान इत्यादियों की प्राप्ति होती है।
मा ते कुमारं रक्षो वधीन्मा धेनुरत्यासारिणी। प्रिया धनस्य भूया एधमाना स्वे गृहे। अयं कमारो जरां धयतु दीर्घमायुः । यस्मै त्वं स्तन प्रप्यायायुर्वर्चो यशो बलम्। यद्भूमेहृदयं दिवि चन्द्रमसि श्रितम्। तदुर्वि पश�....
मा ते कुमारं रक्षो वधीन्मा धेनुरत्यासारिणी।
प्रिया धनस्य भूया एधमाना स्वे गृहे।
अयं कमारो जरां धयतु दीर्घमायुः ।
यस्मै त्वं स्तन प्रप्यायायुर्वर्चो यशो बलम्।
यद्भूमेहृदयं दिवि चन्द्रमसि श्रितम्।
तदुर्वि पश्यं माऽहं पौत्रमघं रुदम्।
यत्ते सुसीमे हृदयं वेदाऽहं तत्प्रजापतौ।
वेदाम तस्य ते वयं माऽहं पौत्रमघं रुदम्।
नामयति न रुदति यत्र वयं वदामसि यत्र चाभिमृशामसि।
आपस्सुप्तेषु जाग्रत रक्षांसि निरितो नुदध्वम्।
अयं कलिं पतयन्तं श्वानमिवोद्वृद्धम्।
अजां वाशिंतामिव मरुतः पर्याध्वं स्वाहा।
शण्डेरथश्शण्डिकेर उलूखलः।
च्यवनो नश्यतादितस्स्वाहा।
अयश्शण्डो मर्क उपवीरं उलूखलः।
च्यवनो नश्यतादितस्स्वाहा।
केशिनीश्श्वलोमिनीः खजापोऽजोपकाशिनीः।
अपेत नश्यतादितस्स्वाहा।
मिश्रवाससः कौबेरका रक्षोराजेन प्रेषिताः।
ग्रामं सजानयो गच्छन्तीच्छन्तोऽपरिदाकृतान्थ्स्वाहा।
एतान् घ्नतैतान्गृह्णीतेत्ययं ब्रह्मणस्पुत्रः।
तानग्निः पर्यसरत्तानिन्द्रस्तान्बृहस्पतिः।
तानहं वेद ब्राह्मणः प्रमृशतः कूटदन्तान् विकेशान्लम्बनस्तनान् स्वाहा।
नक्तञ्चारिण उरस्पेशाञ्छूलहस्तान्कपालपान्।
पूव एषां पितेत्युच्चैश्श्राव्यकर्णकः।
माता जघन्या सर्पति ग्रामे विधुरमिच्छन्ती स्वाहा।
निशीथचारिणी स्वसा सन्धिना प्रेक्षते कुलम्।
या स्वपन्तं बोधयति यस्यै विजातायां मनः।
तासां त्वं कष्णवर्त्मने क्लोमानं हृर्दयं यकृत्।
अग्ने अक्षीणि निर्दह स्वाहा।
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