ॐ नमो भगवते वासुदेवाय धन्वन्तरये अमृतकलशहस्ताय सर्वामयविनाशनाय त्रैलोक्यनाथाय श्रीमहाविष्णवे स्वाहा।
हिन्दी अनुवाद:
भगवान वासुदेव (जो विष्णु के अवतार हैं) को नमस्कार, जो धन्वंतरी के रूप में अमृत कलश धारण करते हैं, सभी रोगों का नाश करते हैं, तीनों लोकों के स्वामी हैं। हे महाविष्णु, मैं यह आहुति समर्पित करता हूँ।
इस मंत्र को सुनने से उपचार और सुरक्षा मिलती है। धन्वंतरी, जो औषधि के देवता हैं, रोगों को समाप्त कर स्वास्थ्य पुनः स्थापित करते हैं। उनके हाथों में अमृत अमरत्व और दिव्य ऊर्जा का प्रतीक है। इस मंत्र का जाप या सुनना उनके आशीर्वाद को आकर्षित करता है, जो एक स्वस्थ जीवन प्रदान करता है, शारीरिक और मानसिक बीमारियों से मुक्त करता है। यह भगवान विष्णु से भी संबंध मजबूत करता है, जो ब्रह्मांड का पालन करते हैं। यह मंत्र तीनों लोकों में शांति और कल्याण सुनिश्चित करता है, जिससे संपूर्ण संतुलन और सामंजस्य प्राप्त होता है।
सम्यक् शतं क्रतून्कृत्वा यत्फलं समवाप्नुयात्। तत्फलं समवाप्नोति कृत्वा श्रीचक्रदर्शनम् ।। - सैकड़ों यज्ञों को सही ढंग से करने पर व्यक्ति धीरे-धीरे उनके फल प्राप्त करता है। लेकिन केवल श्री चक्र का दर्शन मात्र से वही परिणाम तुरंत प्राप्त हो जाते हैं।
इस शरीर के माध्यम से जीव अपने पुण्य और पाप कर्मों के फलस्वरूप सुख-दुख का अनुभव करता है। इसी शरीर से पापी यमराज के मार्ग पर कष्ट सहते हुए उनके पास पहुँचते हैं, जबकि धर्मात्मा प्रसन्नतापूर्वक धर्मराज के पास जाते हैं। विशेष रूप से, केवल मनुष्य ही मृत्यु के बाद एक सूक्ष्म आतिवाहिक शरीर धारण करता है, जिसे यमदूत यमराज के पास ले जाते हैं। अन्य जीव-जंतु, जैसे पशु-पक्षी, ऐसा शरीर नहीं पाते। वे सीधे दूसरी योनि में जन्म लेते हैं। ये प्राणी मृत्यु के बाद वायु रूप में विचरण करते हुए किसी विशेष योनि में जन्म लेने के लिए गर्भ में प्रवेश करते हैं। केवल मनुष्य को अपने शुभ और अशुभ कर्मों का फल इस लोक और परलोक दोनों में भोगना पड़ता है।
लोभ जब होता है तो मनुष्य विवेक को खो बैठता है
हमारा देश अखण्ड ही रहा है और अखण्ड ही रहेगा
हमारा देश अखण्ड ही रहा है, अखण्ड ही रहेगा....
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नारदवीणोज्जीवनसुधोर्मिनिर्यासमाधुरीपूर । त्वं कृष्णन....
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