ॐ रां रामाय नमः। ॐ लं लक्ष्मणाय नमः। ॐ भं भरताय। ॐ शं शत्रुघ्नाय नमः।
विदुर, राजा धृतराष्ट्र के सौतेले भाई, अपने धर्म के गहरे ज्ञान और धर्म के प्रति अटूट समर्पण के लिए प्रसिद्ध थे। जब कृष्ण महायुद्ध से पहले शांति वार्ता के लिए हस्तिनापुर आए, तो उन्होंने राजमहल के बजाय विदुर के विनम्र निवास में ठहरने का चयन किया। अपने साधारण साधनों के बावजूद, विदुर ने कृष्ण की अत्यंत भक्ति और प्रेम के साथ सेवा की, सरल भोजन के साथ महान आतिथ्य का प्रदर्शन किया। कृष्ण का यह चयन विदुर की सत्यनिष्ठा और उनकी भक्ति की पवित्रता को दर्शाता है, जो भौतिक संपत्ति और शक्ति से परे है। यह कहानी सच्चे आतिथ्य के मूल्य और नैतिक सत्यनिष्ठा के महत्व को सिखाती है। यह बताती है कि सच्ची महानता और दिव्य कृपा का निर्धारण किसी की सामाजिक स्थिति या धन से नहीं होता, बल्कि हृदय की निष्कपटता और पवित्रता से होता है। कृष्ण के प्रति विदुर की विनम्र सेवा इस बात का उदाहरण है कि जीवन में किसी की स्थिति की परवाह किए बिना, दयालुता और भक्ति के कार्य ही वास्तव में महत्वपूर्ण हैं।
अनाहत चक्र में पिनाकधारी भगवान शिव विराजमान हैं। अनाहत चक्र की देवी है काकिनी जो हंसकला नाम से भी जानी जाती है।