150.1K
22.5K

Comments

Security Code

16826

finger point right
आपकी वेबसाइट बहुत ही अनोखी और ज्ञानवर्धक है। 🌈 -श्वेता वर्मा

वेदधारा मंत्रों ने मुझे नई ऊर्जा दी है। -Dr Pankaj Rastogi

इस मंत्र से सकारात्मकता मिलती है -bhupendra

इसके लिए मैं आपका हृदय से आभारी हूँ 💖... धन्यवाद 🙏 -pranav mandal

वेदधारा को हिंदू धर्म के भविष्य के प्रयासों में देखकर बहुत खुशी हुई -सुभाष यशपाल

Read more comments

Knowledge Bank

भक्ति-योग का लक्ष्य क्या है?

भक्ति-योग में लक्ष्य भगवान श्रीकृष्ण के साथ मिलन है, उनमें विलय है। कोई अन्य देवता नहीं, यहां तक कि भगवान के अन्य अवतार भी नहीं क्योंकि केवल कृष्ण ही सभी प्रकार से पूर्ण हैं।

मृत्यु का सृजन

सृष्टि के समय, ब्रह्मा ने कल्पना नहीं की थी कि दुनिया जल्द ही जीवित प्राणियों से भर जाएगी। जब ब्रह्मा ने संसार की हालत देखी तो चिंतित हो गए और अग्नि को सब कुछ जलाने के लिए भेजा। भगवान शिव ने हस्तक्षेप किया और जनसंख्या को नियंत्रण में रखने के लिए एक व्यवस्थित तरीका सुझाया। तभी ब्रह्मा ने उसे क्रियान्वित करने के लिए मृत्यु और मृत्यु देवता की रचना की।

Quiz

राजस्थान का चार्भुजा मंदिर किस देवता का है ?

यो ब्रह्मा ब्रह्मण उज्जहार प्राणैः शिरः कृत्तिवासाः पिनाकी । ईशानो देवः स न आयुर्दधातु तस्मै जुहोमि हविषा घृतेन ॥ १ ॥ विभ्राजमानः सरिरस्य मध्या-द्रोचमानो घर्मरुचिर्य आगात् । स मृत्युपाशानपनुद्य घोरानिहायुषेणो घृतम�....

यो ब्रह्मा ब्रह्मण उज्जहार प्राणैः शिरः कृत्तिवासाः पिनाकी ।
ईशानो देवः स न आयुर्दधातु तस्मै जुहोमि हविषा घृतेन ॥ १ ॥
विभ्राजमानः सरिरस्य मध्या-द्रोचमानो घर्मरुचिर्य आगात् ।
स मृत्युपाशानपनुद्य घोरानिहायुषेणो घृतमत्तु देवः ॥ २ ॥
ब्रह्मज्योति-र्ब्रह्म-पत्नीषु गर्भं यमादधात् पुरुरूपं जयन्तम् ।
सुवर्णरम्भग्रह-मर्कमर्च्यं तमायुषे वर्धयामो घृतेन ॥ ३ ॥
श्रियं लक्ष्मी-मौबला-मम्बिकां गां षष्ठीं च यामिन्द्रसेनेत्युदाहुः ।
तां विद्यां ब्रह्मयोनिग्ं सरूपामिहायुषे तर्पयामो घृतेन ॥ ४ ॥
दाक्षायण्यः सर्वयोन्यः स योन्यः सहस्रशो विश्वरूपा विरूपाः ।
ससूनवः सपतयः सयूथ्या आयुषेणो घृतमिदं जुषन्ताम् ॥ ५ ॥
दिव्या गणा बहुरूपाः पुराणा आयुश्छिदो नः प्रमथ्नन्तु वीरान् ।
तेभ्यो जुहोमि बहुधा घृतेन मा नः प्रजाग्ं रीरिषो मोत वीरान् ॥ ६ ॥
एकः पुरस्तात् य इदं बभूव यतो बभूव भुवनस्य गोपाः ।
यमप्येति भुवनग्ं साम्पराये स नो हविर्घृत-मिहायुषेत्तु देवः ॥ ७ ॥
वसून् रुद्रा-नादित्यान् मरुतोऽथ साध्यान् ऋभून् यक्षान् गन्धर्वाग्श्च
पितॄग्श्च विश्वान् ।
भृगून् सर्पाग्श्चाङ्गिरसोऽथ सर्वान् घृतग्ं हुत्वा स्वायुष्या महयाम
शश्वत् ॥ ८ ॥

Other languages: KannadaTeluguTamilMalayalamEnglish

Recommended for you

गुरु के पद नख का प्रकाश सूर्य के समान है

गुरु के पद नख का प्रकाश सूर्य के समान है

Click here to know more..

देव, दैत्य और दानवों की उत्पत्ति

देव, दैत्य और दानवों की उत्पत्ति

महाभारत के अनुसार ब्रह्मा जी के मानस पुत्र हैं मरीचि, अत्�....

Click here to know more..

ताण्डवेश्वर स्तोत्र

ताण्डवेश्वर स्तोत्र

वृथा किं संसारे भ्रमथ मनुजा दुःखबहुले पदाम्भोजं दुःखप्�....

Click here to know more..