स्तोत्र अर्थ सहित -
पार्वतीसहितं स्कन्दनन्दिविघ्नेशसंयुतम्। चिन्तयामि हृदाकाशे भजतां पुत्रदं शिवम्॥
अर्थ: 'मैं अपने हृदय के आकाश में भगवान शिव का ध्यान करता हूँ, जो पार्वती, स्कंद (कार्तिकेय), नंदी, और गणेश के साथ हैं। वे उन भक्तों को संतान प्रदान करने वाले हैं जो उनकी पूजा करते हैं।'
भगवन् रुद्र सर्वेश सर्वभूतदयापर। अनाथनाथ सर्वज्ञ पुत्रं देहि मम प्रभो॥
अर्थ: 'हे भगवान रुद्र, सर्वश्रेष्ठ, सभी प्राणियों के प्रति दयालु, अनाथों के नाथ, सर्वज्ञ, कृपया मुझे एक पुत्र प्रदान करें, हे मेरे प्रभु।'
रुद्र शंभो विरूपाक्ष नीलकण्ठ महेश्वर। पूर्वजन्मकृतं पापं व्यपोह्य तनयं दिश॥
अर्थ: 'हे रुद्र, शंभू, त्रिनेत्रधारी (विरूपाक्ष), नीलकंठ, महेश्वर, कृपया पिछले जन्मों के पापों को मिटा दें और मुझे एक पुत्र प्रदान करें।'
चन्द्रशेखर सर्वज्ञ कालकूटविषाशन। मम सञ्चितपापस्य लयं कृत्वा सुतं दिश॥
अर्थ: 'हे चंद्रशेखर (जिनके मस्तक पर चंद्रमा है), सर्वज्ञ, कालकूट विष के संहारक, कृपया मेरे संचित पापों का नाश करके मुझे एक पुत्र प्रदान करें।'
त्रिपुरारे क्रतुध्वंसिन् कामाराते वृषध्वज। कृपया मयि देवेश सुपुत्रान् देहि मे बहून्॥
अर्थ: 'हे त्रिपुरारी (तीन नगरों के संहारक), यज्ञों के विध्वंसक, काम (प्रेम के देवता) के शत्रु, वृषभ ध्वज, हे देवों के ईश्वर, कृपया मुझे कई उत्तम पुत्र प्रदान करें।'
अन्धकारे वृषारूढ चन्द्रवह्न्यर्कलोचन। भक्ते मयि कृपां कृत्वा सन्तानं देहि मे प्रभो॥
अर्थ: 'हे प्रभु, जो वृषभ पर आरूढ़ हैं, जिनकी आँखें चंद्रमा, अग्नि और सूर्य हैं, मुझ पर, आपके भक्त पर, कृपा करिए और मुझे संतान प्रदान करें।'
कैलासशिखरावास पार्वतीस्कन्दसंयुत। मम पुत्रं च सत्कीर्तिं ऐश्वर्यं चाशु देहि भोः॥
अर्थ: 'हे कैलाश शिखर के निवासी, पार्वती और स्कंद के साथ, कृपया मुझे पुत्र, उत्तम कीर्ति और ऐश्वर्य शीघ्र ही प्रदान करें।'
संतान प्राप्ति का आशीर्वाद: नियमित रूप से इस स्तोत्र का जप करना भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए माना जाता है, जो एक पुण्य संतान के जन्म को सुनिश्चित करता है। यह विशेष रूप से उन भक्तों के लिए महत्वपूर्ण है जो संतान प्राप्ति और अपनी वंश परंपरा की निरंतरता की कामना करते हैं।
कर्ण का असली पिता थे सूर्यदेव। माता थी कुंती। अधिरथ - राधा दंपती ने कर्ण को पाल पोसकर बडा किया।
संध्या देवी ब्रह्मा जी की मानस पुत्री थी। संध्या के सौन्दर्य को देखकर ब्रह्मा को स्वयं उसके ऊपर कामवासना आयी। संध्या के मन में भी कामवासना आ गई। इस पर उन्होंने शर्मिंदगी महसूस हुई। संध्या ने तपस्या करके ऐसा नियम लाया कि बच्चों में पैदा होते ही कामवासना न आयें, उचित समय पर ही आयें। संध्या देवी का पुनर्जन्म है वशिष्ठ महर्षि की पत्नी अरुंधति।
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यो लोकरक्षार्थमिहावतीर्य वैकुण्ठलोकात् सुरवर्यवर्यः।....
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