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आनंद की अनुभूति होती है -User_snlyh5

आप जो अच्छा काम कर रहे हैं, उसे देखकर बहुत खुशी हुई 🙏🙏 -उत्सव दास

हरबार जब मैं इन मंत्रों को सुनता हूँ, तो मुझे बहुत शांति मिलती है -प्रकाश मिश्रा

इस मंत्र से दिल को सुकून मिलता है -सागर गौरव

गुरुकुलों और गोशालाओं को पोषित करने में आपका कार्य सनातन धर्म की सच्ची सेवा है। 🌸 -अमित भारद्वाज

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बृहस्पतिर्नः परि पातु पश्चादुतोत्तरस्मादधरादघायोः।
इन्द्रः पुरस्तादुत मध्यतो नः सखा सखिभ्यो वरिवः कृणोतु॥

बृहस्पति हमें पश्चिम से, ऊपर से, और नीचे से पापों से बचाएं।
इन्द्र, सामने और बीच से, मित्र बनकर हमें शत्रुओं से सुरक्षित रास्ता प्रदान करें।

इस मंत्र को सुनने से कई लाभ मिलते हैं। यह सभी दिशाओं से रक्षा का आह्वान करता है - ऊपर, नीचे, सामने और पीछे। बृहस्पति, जो देवताओं के गुरु हैं, बुद्धि और मार्गदर्शन प्रदान करते हैं, जबकि इन्द्र बाधाओं को दूर करते हैं और सुरक्षित मार्ग बनाते हैं। यह मंत्र पापों और नकारात्मक प्रभावों से दूर रखता है, जिससे पवित्रता बनी रहती है। इसके अलावा, यह इन्द्र के साथ दिव्य मित्रता और समर्थन को मजबूत करता है। कुल मिलाकर, यह मंत्र जीवन में सुरक्षा, ज्ञान, पवित्रता और दिव्य सहायता को बढ़ावा देता है।

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महाभारत के युद्ध में कितनी सेना थी?

महाभारत के युद्ध में कौरव पक्ष में ११ और पाण्डव पक्ष में ७ अक्षौहिणी सेना थी। २१,८७० रथ, २१,८७० हाथी, ६५, ६१० घुड़सवार एवं १,०९,३५० पैदल सैनिकों के समूह को अक्षौहिणी कहते हैं।

वसुदेव और देवकी पूर्व जन्म में क्या थे?

सबसे पहले वसुदेव, प्रजापति सुतपा थे और देवकी उनकी पत्नी पृश्नि। उस समय भगवान ने पृश्निगर्भ के रूप में उनका पुत्र बनकर जन्म लिया। उसके बाद उस दंपति का पुनर्जन्म हुआ कश्यप - अदिति के रूप में। भगवान बने उनका पुत्र वामन। तीसरा पुनर्जन्म था वसुदेव - देवकी के रूप में।

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हनुमानजी को किस भगवान का अवतार मानते हैं ?

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