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वेदधारा के कार्य से हमारी संस्कृति सुरक्षित है -मृणाल सेठ

नियम से आपका चैनल देखता हूं पूजन मंत्र की जानकारी मिलती है मन प्रसन्न हो जाता है आपका आभार धन्यवाद। मुझे अपने साथ जोड़ने का -राजेन्द्र पाण्डेय

गुरुकुलों और गोशालाओं को पोषित करने में आपका कार्य सनातन धर्म की सच्ची सेवा है। 🌸 -अमित भारद्वाज

आपका ये अतुलनीय प्रयास हमें मंत्रों की उस सागर से मिलने का कार्य करवाया हे जो किन्हीं कारणों से हमसे दूर रहा,आपको कोटि कोटि प्रणाम -विकास द्विवेदी

हम हिन्दूओं को एकजुट करने के लिए यह मंच बहुत ही अच्छी पहल है इससे हमें हमारे धर्म और संस्कृति से जुड़कर हमारा धर्म सशक्त होगा और धर्म सशक्त होगा तो देश आगे बढ़ेगा -भूमेशवर ठाकरे

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नर्मदायै नमः प्रातः नर्मदायै नमो निशि।
नमोऽस्तु नर्मदे तुभ्यं त्राहि मां विषसर्पतः॥

मैं प्रातः और रात्रि में नर्मदा देवी को प्रणाम करता हूँ। हे नर्मदा, मैं आपको नमन करता हूँ, कृपया मुझे विषैले सर्पों से बचाएं।

यह श्लोक नर्मदा देवी के लिए एक विनम्र प्रार्थना है, जिसमें सर्पदंश से सुरक्षा की याचना की जाती है। बार-बार की गई यह प्रार्थना देवी की दिव्य शक्ति पर गहरी आस्था और श्रद्धा को दर्शाती है।

श्लोक के लाभ:

इस श्लोक का नियमित जाप नर्मदा देवी की सुरक्षात्मक कृपा को प्राप्त करने का विश्वास दिलाता है, विशेष रूप से विषैले प्राणियों के खतरों से। यह भक्त के जीवन में सुरक्षा और दिव्य संरक्षण का एहसास कराता है।

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हनुमान जी की अतुलनीय भक्ति और गुण

भगवान हनुमान जी ने सेवा, कर्तव्य, अडिग भक्ति, ब्रह्मचर्य, वीरता, धैर्य और विनम्रता के उच्चतम मानकों का उदाहरण प्रस्तुत किया। अपार शक्ति और सामर्थ्य के बावजूद, वे विनम्रता, शिष्टता और सौम्यता जैसे गुणों से सुशोभित थे। उनकी अनंत शक्ति का हमेशा दिव्य कार्यों को संपन्न करने में उपयोग किया गया, इस प्रकार उन्होंने दिव्य महानता का प्रतीक बन गए। यदि कोई अपनी शक्ति का उपयोग लोक कल्याण और दिव्य उद्देश्यों के लिए करता है, तो परमात्मा उसे दिव्य और आध्यात्मिक शक्तियों से विभूषित करता है। यदि शक्ति का उपयोग बिना इच्छा और आसक्ति के किया जाए, तो वह एक दिव्य गुण बन जाता है। हनुमान जी ने कभी भी अपनी शक्ति का उपयोग तुच्छ इच्छाओं या आसक्ति और द्वेष के प्रभाव में नहीं किया। उन्होंने कभी भी अहंकार को नहीं अपनाया। हनुमान जी एकमात्र देवता हैं जिन्हें अहंकार कभी नहीं छू सका। उन्होंने हमेशा निःस्वार्थ भाव से अपने कर्तव्यों का पालन किया, निरंतर भगवान राम का स्मरण करते रहे।

Humidity in the atmosphere - Vedic term

Veda calls humidity in the atmosphere Agreguvah (अग्रेगुवः). It is also called Agrepuvah (अग्रेपुवः) since it purifies the atmosphere.

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इस मंदिर में भगवान शिव की मां दुर्गा के रूप में पूजन की प्रथा है । कौन सा है यह मंदिर ?

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