अभीवर्तेन मणिना येनेन्द्रो अभिववृधे। तेनास्मान् ब्रह्मणस्पतेऽभि राष्ट्राय वर्धय॥
जिस सुरक्षा से इंद्र की शक्ति बढ़ी, हे ब्रह्मणस्पति (वाणी के स्वामी), हमें भी बढ़ाओ, हमारे राज्य की शक्ति के लिए।
अभिवृत्य सपत्नान् अभि या नो अरातयः। अभि पृतन्यन्तं तिष्ठाभि यो नो दुरस्यति॥
जो हमारे विरुद्ध हैं, उनका सामना करो, और जो हमें नुकसान पहुंचाने का प्रयास करते हैं, उनके खिलाफ खड़े हो जाओ।
अभि त्वा देवः सविताभि षोमो अवीवृधत्। अभि त्वा विश्वा भूतान्यभीवर्तो यथाससि॥
देवता सविता (प्रेरक) और सोम तुम्हें शक्ति प्रदान करें, सभी प्राणी तुम्हारा समर्थन करें, ताकि तुम आगे बढ़ो और विजय प्राप्त करो।
अभीवर्तो अभिभवः सपत्नक्षयणो मणिः। राष्ट्राय मह्यं बध्यतां सपत्नेभ्यः पराभुवे॥
यह सुरक्षा विजय और शत्रुओं के विनाश के लिए है, मेरे राज्य की रक्षा के लिए इसे मुझसे बांधा जाए, ताकि मैं अपने प्रतिद्वंद्वियों को परास्त कर सकूं।
उदसौ सूर्यो अगादुदिदं मामकं वचः। यथाहं शत्रुहोऽसान्यसपत्नः सपत्नहा॥
जैसे सूर्योदय होता है, वैसे ही मेरा वचन भी, मैं शत्रुओं का संहारक बनूं, प्रतिद्वंद्वियों से मुक्त और उन पर विजय प्राप्त करूं।
सपत्नक्षयणो वृषाभिरष्ट्रो विषासहिः। यथाहमेषां वीराणां विराजानि जनस्य च॥
मैं शक्तिशाली वृषभ (बैल) जैसा होऊं, जो शत्रुओं को नष्ट कर सके, ताकि मैं इन वीरों और जनता पर शासन कर सकूं।
इन मंत्रों को सुनने से मानसिक शांति मिलती है, तनाव कम होता है, और ध्यान व एकाग्रता में सुधार होता है। माना जाता है कि ये मंत्र दिव्य सुरक्षा का आह्वान करते हैं, जो नकारात्मक ऊर्जा से बचाव का कवच बनाते हैं। नियमित रूप से सुनने से आंतरिक शक्ति मिलती है, आत्मविश्वास बढ़ता है, और भय एवं बाधाओं पर विजय प्राप्त करने में मदद मिलती है। साथ ही, ये वातावरण को शुद्ध करते हैं और सकारात्मक ऊर्जा से भर देते हैं, जिससे आध्यात्मिक विकास और ईश्वर से गहरा संबंध स्थापित होता है। इसके अलावा, ये मंत्र धैर्य और सहनशक्ति को प्रेरित करते हैं, जिससे व्यक्ति जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए अधिक तैयार और सशक्त महसूस करता है।
देवकार्यादपि सदा पितृकार्यं विशिष्यते । देवताभ्यो हि पूर्वं पितॄणामाप्यायनं वरम्॥ (हेमाद्रिमें वायु तथा ब्रह्मवैवर्तका वचन) - देवकार्य की अपेक्षा पितृकार्य की विशेषता मानी गयी है। अतः देवकार्य से पूर्व पितरों को तृप्त करना चाहिये।
चढ़े हुए फूल को अँगूठे और तर्जनी की सहायता से उतारे।
दुर्गा सप्तशती - सप्तशती न्यास
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