महर्षि व्यास का असली नाम है कृष्ण द्वैपायन। इनका रंग भगवान कृष्ण के जैसा था और इनका जन्म यमुना के बीच एक द्वीप में हुआ था। इसलिए उनका नाम बना कृष्ण द्वैपायन। पराशर महर्षि इनके पिता थे और माता थी सत्यवती। वेद के अर्थ को पुराणों और महाभारत द्वारा विस्तृत करने से इनको व्यास कहते हैं। व्यास एक स्थान है। हर महायुग में एक नया व्यास होता है। वर्तमान महायुग के व्यास हैं कृष्ण द्वैपायन।
महर्षि दधीचि की स्मृति में ।
क्षेत्रियै त्वा निर्ऋत्यै त्वा द्रुहो मुञ्चामि वरुणस्य पाशात्। अनागसं ब्रह्मणे त्वा करोमि शिवे ते द्यावापृथिवी उभे इमे॥ शन्ते अग्निः सहाद्भिरस्तु शन्द्यावापृथिवी सहौषधीभिः। शमन्तरिक्षँ सह वातेन ते शन्ते चतस्रः प�....
क्षेत्रियै त्वा निर्ऋत्यै त्वा द्रुहो मुञ्चामि वरुणस्य पाशात्।
अनागसं ब्रह्मणे त्वा करोमि शिवे ते द्यावापृथिवी उभे इमे॥
शन्ते अग्निः सहाद्भिरस्तु शन्द्यावापृथिवी सहौषधीभिः।
शमन्तरिक्षँ सह वातेन ते शन्ते चतस्रः प्रदिशो भवन्तु॥
या दैवीश्चतस्रः प्रदिशो वातपत्नीरभि सूर्यो विचष्टे।
तासान्त्वाऽऽजरस आ दधामि प्र यक्ष्म एतु निर्ऋतिं पराचैः॥
अमोचि यक्ष्माद्दुरितादवर्त्यै द्रुहः पाशान्निर्ऋत्यै चोदमोचि।
अहा अवर्तिमविदथ्स्योनमप्यभूद्भद्रे सुकृतस्य लोके॥
सूर्यमृतन्तमसो ग्राह्या यद्देवा अमुञ्चन्नसृजन्व्येनसः।
एवमहमिमं क्षेत्रियाज्जामिशँसाद्द्रुहो मुञ्चामि वरुणस्य पाशात्॥
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