भद्रं कर्णेभिः...
श्री गणेश अथर्व शीर्ष में ऋषि अथर्वा ने जैसे गणेशजी का अनुभव किया, उसका वर्णन करते हैं। यह उनका स्वयं का अनुभव है।
बहुत लोग सोचते हैं कि अथर्वशीर्ष, अथर्ववेद का भाग है। अथर्वा ऋषि के द्वारा प्रस्तुत होने के कारण इसे अथर्व शीर्ष कहते हैं।
भद्रं कर्णेभिः…
यह भी मूल अथर्वशीर्ष का भाग नहीं है। इसे शान्तिपाठ कहते हैं।
अथर्वशीर्ष एक उपनिषद है — गणेशोपनिषद। जब भी उपनिषदों का पाठ करते हैं, उसके प्रारम्भ और अन्त में शान्तिपाठ होता है।
अथर्वशीर्ष की शुरुआत है — 'ॐ नमस्ते गणपतये' — यहाँ से।
भद्रं कर्णेभिः... आपकी कृपा से हमारे कान अच्छी बातों को सुनें।
भद्रं पश्येम अक्षभिः — अक्षभिः यानी आँखों से।
भद्रं पश्येम — अच्छा ही देखें।
यजत्राः — आपका यजन, अर्थात पूजन करनेवाले हम आपकी कृपा से अच्छी बातों को ही सुनें, अच्छा ही देखें।
स्थिरैरंगैः तुष्टुवांसः तनूभिः...
तुष्टुवांसः — आपकी स्तुति करनेवाले हम।
स्थिरैरंगैः तनूभिः — मज़बूत, दृढ़ और स्वस्थ अंगोंवाले शरीर के साथ।
व्यशेम देवहितं यदायुः — विधाता ने जितनी आयु हमारे लिये कल्पना की है, तब तक जीएं।
स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः... ददातु — इन्द्र, जिनकी स्तुतियाँ हमारे पूर्वजों द्वारा सुनी जा चुकी हैं।
पूषा यानी सूर्य, तार्क्ष्य यानी गरुड़, जिन्हें अरिष्टनेमि (विपत्ति से रक्षा करनेवाले) कहते हैं, और बृहस्पति — ये सारे देवता हमें स्वस्ति ददातु — सुख और शान्ति प्रदान करें।
स्कंद पुराण के अनुसार इल्वल और वातापी ऋषि दुर्वासा और अजमुखी के पुत्र हैं। उन्होंने अपने पिता से कहा कि वे अपनी सारी शक्ति उन्हें दे दें । दुर्वासा को क्रोध आ गया और उन्होंने श्राप दिया कि वे अगस्त्य के हाथों मर जाएंगे।
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