मैं वहां पर बड़े ही आनन्द से भगवान विष्णु देव की कथाओं का श्रवण करता हुआ बैठ गया था। हे महाभाग ! यह भूमि भी जो समस्त भूतों की धात्री स्वरूप वाली है वहीं पर उन शेष भगवान् के आगे बैठी हुई थी और बहुत ही प्रीति के साथ सदा कथाओं का श्रवण किया करती थी। वह भूमि साक्षात् इस मही के धारण करने वाले शेष भगवान् से जो-जो भी पूछा करती है उसको समस्त ऋषिगण वहीं पर संस्थित होकर उनके ही अनुग्रह के होने से श्रवण किया करते हैं। हे वत्स ! मैंने भी वहां परम शुभ कुष्ण प्रेमामृत का श्रवण किया था।८-१०॥ उस स्तोत्र को मैं अब आपको बतलाऊंगा जिसको प्राप्त करने के लिये तुम यहाँ पर आये हो। इस स्तोत्र में वाराह आदि भगवान के अवतारों का चरित है जो समस्त प्रकार के पापों का विनाश कर देने वाला होता है। यह चरित परमाधिक सुख-सौभाग्य के प्रदान करने वाला है-परलोक में जाकर इस भौतिक शरीर के त्याग करने के पश्चात् मोक्ष का भी देने वाला है जिससे इस संसार में बारम्बार जन्म-मरण के महान् कष्टों से छुटकारा मिल जाया करता है । और यह चरित ऐसा अद्भुत है कि जो पूर्ण ज्ञान और विशेष ज्ञान का भी कारण होना है । इस वसुन्धरा देवी ने इन सव का श्रवण किया था और यह बहुत ही अधिक प्रसन्न हुई थी, हे वत्स ! फिर धरा के धारण करने वाले अनन्त भगवान् से बोली थी ।१२। परम प्रणत होकर इस भूमि ने फिर भगवान् कृष्ण की लीला को जानने के लिए प्रार्थना की थी।धरणी ने कहा
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