नारद पुराण

Narada

श्रीसनक जी बोले-ब्रह्मन्! सुनिये। मैं अत्यन्त दुर्गम यमलोक के मार्ग का वर्णन करता हूँ। वह पुण्यात्माओं के लिये सुखद और पापियोंके लिये भयदायक है। मुनीश्वर! प्राचीन ज्ञानी पुरुषों ने यमलोकके मार्ग का विस्तार छियासी हजार योजन बताया है। जो मनुष्य यहाँ दान करनेवाले होते हैं, वे उस मार्ग में सुखसे जाते हैं; और जो धर्म से हीन हैं, वे अत्यन्त पीड़ित होकर बड़े दुःख से यात्रा करते हैं। पापी मनुष्य उस मार्गपर दीनभाव से जोर-जोर से रोते-चिल्लाते जाते हैं-वे अत्यन्त भयभीत और नंगे होते हैं। उनके कण्ठ, ओठ और तालु सूख जाते हैं। यमराज के दूत चाबुक आदि से तथा अनेक प्रकार के आयुधों से उन पर आघात करते रहते हैं। और वे इधर-उधर भागते

हुए बड़े कष्ट से उस पथ पर चल पाते हैं। वहाँ कहीं कीचड़ है, कहीं जलती हुई आग है, कहीं तपायी हुई बालू बिछी है, कहीं तीखी धारवाली शिलाएँ हैं। कहीं काँटेदार वृक्ष हैं और कहीं ऐसे-ऐसे पहाड़ हैं, जिनकी शिलाओं पर चढ़ना अत्यन्त दुःखदायक होता है। कहीं काँटों की बहुत बड़ी बाड़ लगी हुई है, कहीं-कहीं कन्दरा में प्रवेश करना पड़ता है। उस मार्ग में कहीं कंकड़ हैं, कहीं ढेले हैं और कहीं सुई के समान काँटे बिछे हैं तथा कहीं बाघ गरजते रहते हैं। नारदजी! इस प्रकार पापी नुष्य-भाँति-भाँति के क्लेश उठाते हुए यात्रा करते हैं। कोई पाश में बँधे होते हैं, कोई अंकुशों से खींचे जाते हैं और किन्हीं की पीठ पर अस्त्र-शस्त्रों की मार पड़ती रहती है। इस दुर्दशा के साथ पापी उस मार्ग पर जाते हैं। किन्हीं की नाक छेदकर उस में नकेल डाल दी जाती है और उसी को पकड़कर खींचा जाता है। कोई आँतों से बँधे रहते हैं और कुछ पापी अपने शिश्न के अग्रभाग से लोहे का भारी भार ढोते हुए यात्रा करते हैं। 

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Which bird is the pet of Goddess Saraswati?

Swan is the pet bird and vehicle of Goddess Saraswati.

देवकार्य से पूर्व पितरों को तृप्त करें

देवकार्यादपि सदा पितृकार्यं विशिष्यते । देवताभ्यो हि पूर्वं पितॄणामाप्यायनं वरम्॥ (हेमाद्रिमें वायु तथा ब्रह्मवैवर्तका वचन) - देवकार्य की अपेक्षा पितृकार्य की विशेषता मानी गयी है। अतः देवकार्य से पूर्व पितरों को तृप्त करना चाहिये।

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विवाह संस्कार में मधुपर्क क्या है ?
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