कठोपनिषद - भाग ३३

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गोदान की विधि

सुपुष्ट सुंदर और दूध देने वाली गाय को बछडे के साथ दान में देना चाहिए। न्याय पूर्वक कमायी हुई धन से प्राप्त होनी चाहिए गौ। कभी भी बूढी, बीमार, वंध्या, अंगहीन या दूध रहित गाय का दान नही करना चाहिए। गाय को सींग में सोना और खुरों मे चांदी पहनाकर कांस्य के दोहन पात्र के साथ अच्छी तरह पूजा करके दान में देते हैं। गाय को पूरब या उत्तर की ओर मुह कर के खडा करते हैं और पूंछ पकडकर दान करते हैं। स्वीकार करने वाला जब जाने लगता है तो उसके पीछे पीछे आठ दस कदम चलते हैं। गोदान का मंत्र- गवामङ्गेषु तिष्ठन्ति भुवनानि चतुर्दश। तस्मादस्याः प्रदानेन अतः शान्तिं प्रयच्छ मे।

शिव जी को अद्वितीय क्यों कहते हैं?

क्यों कि शिव जी ही ब्रह्मा के रूप में सृष्टि, विष्णु के रूप में पालन और रुद्र के रूप में संहार करते हैं।

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